रविवार, 26 नवंबर 2017

श्री हनुमते नम:


“प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन ।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ॥“
(मैं पवनकुमार श्री हनुमान्‌जी को प्रणाम करता हूँ, जो दुष्ट रूपी वन को भस्म करने के लिए अग्निरूप हैं, जो ज्ञान की घनमूर्ति हैं और जिनके हृदय रूपी भवन में धनुष-बाण धारण किए श्री रामजी निवास करते हैं) ||
ये हनुमान जी है जिन्होंने शरचापधारी महाराज श्रीराम को अपने हृदय में बंद कर रखा है, जिससे वे बाहर निकल ही नहीं पाते !!

2 टिप्‍पणियां: