शनिवार, 26 जुलाई 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - इकतीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - इकतीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

मनुष्ययोनि को प्राप्त हुए जीव की गति का वर्णन

आरभ्य सप्तमान् मासात् लब्धबोधोऽपि वेपितः ।
नैकत्रास्ते सूतिवातैः विष्ठाभूरिव सोदरः ॥ १० ॥
नाथमान ऋषिर्भीतः सप्तवध्रिः कृताञ्जलिः ।
स्तुवीत तं विक्लवया वाचा येनोदरेऽर्पितः ॥ ११ ॥

जन्तुरुवाच –

तस्योपसन्नमवितुं जगदिच्छयात्त
     नानातनोर्भुवि चलत् चरणारविन्दम् ।
सोऽहं व्रजामि शरणं ह्यकुतोभयं मे
     येनेदृशी गतिरदर्श्यसतोऽनुरूपा ॥ १२ ॥

सातवाँ महीना आरम्भ होनेपर उसमें ज्ञानशक्तिका भी उन्मेष हो जाता है; परन्तु प्रसूतिवायु से चलायमान रहनेके कारण वह उसी उदर में उत्पन्न हुए विष्ठा के कीड़ों के समान एक स्थानपर नहीं रह सकता ॥ १० ॥ तब सप्तधातुमय स्थूलशरीर से बँधा हुआ वह देहात्मदर्शी जीव अत्यन्त भयभीत होकर दीन वाणीसे कृपा-याचना करता हुआ, हाथ जोडक़र उस प्रभुकी स्तुति करता है, जिसने उसे माता के गर्भ में डाला है ॥ ११ ॥
जीव कहता है—मैं बड़ा अधम हूँ ; भगवान्‌ ने मुझे जो इस प्रकारकी गति दिखायी है, वह मेरे योग्य ही है। वे अपनी शरणमें आये हुए इस नश्वर जगत् की  रक्षाके लिये ही अनेक प्रकारके रूप धारण करते हैं; अत: मैं भी भूतलपर विचरण करनेवाले उन्हींके निर्भय चरणारविन्दों की शरण लेता हूँ ॥ १२ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से

1 टिप्पणी:

  1. ॐ कृष्णाय वासुदेवाय
    हरये परमात्मने
    प्रणत क्लेशनाशाय
    गोविंदाय नमो नमः 🙏
    हे नाथ नारायण वासुदेव: !!
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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