॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - छब्बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)
महदादि भिन्न-भिन्न तत्त्वोंकी उत्पत्ति का वर्णन
रूपमात्राद् विकुर्वाणात् तेजसो दैवचोदितात् ।
रसमात्रं अभूत् तस्मात् अम्भो जिह्वा रसग्रहः ॥ ४१ ॥
कषायो मधुरस्तिक्तः कट्वम्ल इति नैकधा ।
भौतिकानां विकारेण रस एको विभिद्यते ॥ ४२ ॥
क्लेदनं पिण्डनं तृप्तिः प्राणनाप्यायनोन्दनम् ।
तापापनोदो भूयस्त्वं अम्भसो वृत्तयस्त्विमाः ॥ ४३ ॥
फिर दैव की प्रेरणा से रूपतन्मात्रमय तेज के विकृत होनेपर उससे रसतन्मात्र हुआ और उससे जल तथा रसको ग्रहण करानेवाली रसनेन्द्रिय (जिह्वा) उत्पन्न हुई ॥ ४१ ॥ रस अपने शुद्ध स्वरूपमें एक ही है; किन्तु अन्य भौतिक पदार्थोंके संयोग से वह कसैला, मीठा, तीखा, कड़वा, खट्टा और नमकीन आदि कई प्रकार का हो जाता है ॥ ४२ ॥ गीला करना, मिट्टी आदि को पिण्डाकार बना देना, तृप्त करना, जीवित रखना, प्यास बुझाना, पदार्थों को मृदु कर देना, ताप की निवृत्ति करना और कूपादि में से निकाल लिये जानेपर भी वहाँ बार-बार पुन: प्रकट हो जाना—ये जल की वृत्तियाँ हैं ॥ ४३ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
🌺💖🥀ॐ श्रीपरमात्मने नमः
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे 🙏 हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे 🙏
महोदय, मैं एक साधारण सा सनातनी हूँ, किन्तु हिन्दू धर्म की कुछ विसंगतियों की ओर आप जैसे विद्वान का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ जिसका उदाहरण देकर अन्य विधर्मी हमारा उपहास उड़ाते हैं. उदाहरण के लिए भगवान ब्रह्मा ने अपनी ही बेटी से क्यों विवाह किया जब कि ज्ञान की देवी सरस्वती संपूर्ण प्रयत्न के बाद भी इस विवाह को रोकने में असफल रहीं.
जवाब देंहटाएंसे जबरदस्ती विवाह क्यों किया जब कि ज्ञान की देवी सरस्वती ने इसे नकारने के लिए संपूर्ण प्रयत्न किया किन्तु उन्हे असफलता मिली.