शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - अट्ठाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - अट्ठाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०९)

अष्टाङ्गयोग की विधि

मुक्ताश्रयं यर्हि निर्विषयं विरक्तं
     निर्वाणमृच्छति मनः सहसा यथार्चिः ।
आत्मानमत्र पुरुषोऽव्यवधानमेकम्
     अन्वीक्षते प्रतिनिवृत्तगुणप्रवाहः ॥ ३५ ॥
सोऽप्येतया चरमया मनसो निवृत्त्या
     तस्मिन् महिम्न्यवसितः सुखदुःखबाह्ये ।
हेतुत्वमप्यसति कर्तरि दुःखयोर्यत्
     स्वात्मन्विधत्त उपलब्धपरात्मकाष्ठः ॥ ३६ ॥

जैसे तेल आदि के चुक जाने पर दीपशिखा अपने कारणरूप तेजस्-तत्त्व में लीन हो जाती है, वैसे ही आश्रय, विषय और राग से रहित होकर मन शान्त— ब्रह्माकार हो जाता है । इस अवस्था के प्राप्त होने पर जीव गुणप्रवाहरूप देहादि उपाधि के  निवृत्त हो जाने के कारण ध्याता, ध्येय  आदि विभाग से रहित एक अखण्ड परमात्मा को ही सर्वत्र अनुगत देखता है  ॥ ३५ ॥ योगाभ्यास  से प्राप्त हुई चित्त की इस अविद्यारहित लयरूप निवृत्ति से अपनी सुख-दु:ख-रहित ब्रह्मरूप  महिमा में  स्थित होकर  परमात्मतत्त्व का साक्षात्कार कर लेने पर वह योगी जिस सुख-दु:ख के भोक्तृत्व को पहले अज्ञानवश  अपने  स्वरूप में देखता था, उसे अब अविद्याकृत अहंकार में ही देखता है     ॥ ३६॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से

2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌸🌿🌺ॐश्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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  2. जय श्री कृष्णा 🙏😊

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