रविवार, 6 जुलाई 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - अट्ठाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट११)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - अट्ठाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट११)

अष्टाङ्गयोग की विधि

यथा पुत्राच्च वित्ताच्च पृथङ्‌मर्त्यः प्रतीयते ।
अप्यात्मत्वेनाभिमताद् देहादेः पुरुषस्तथा ॥ ३९ ॥
यथोल्मुकाद् विस्फुलिङ्गाद् धूमाद्वापि स्वसम्भवात् ।
अप्यात्मत्वेनाभिमताद् यथाग्निः पृथगुल्मुकात् ॥ ४० ॥
भूतेन्द्रियान्तःकरणात् प्रधानात् जीवसंज्ञितात् ।
आत्मा तथा पृथग्द्रष्टा भगवान् ब्रह्मसंज्ञितः ॥ ४१ ॥

जिस प्रकार अत्यन्त स्नेहके कारण पुत्र और धनादि में भी साधारण जीवोंकी आत्मबुद्धि रहती है, किन्तु थोड़ा-सा विचार करनेसे ही वे उनसे स्पष्टतया अलग दिखायी देते हैं, उसी प्रकार जिन्हें यह अपना आत्मा मान बैठा है, उन देहादिसे भी उनका साक्षी पुरुष पृथक् ही है ॥ ३९ ॥ जिस प्रकार जलती हुई लकड़ीसे, चिनगारी से, स्वयं अग्नि से ही प्रकट हुए धूएँ से तथा अग्निरूप मानी जानेवाली उस जलती हुई लकड़ी से भी अग्नि वास्तव में पृथक् ही है—उसी प्रकार भूत, इन्द्रिय और अन्त:करण से उनका साक्षी आत्मा अलग है, तथा जीव कहलाने वाले उस आत्मा से भी ब्रह्म भिन्न है और प्रकृति से उसके सञ्चालक पुरुषोत्तम भिन्न हैं ॥ ४०-४१ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से

2 टिप्‍पणियां:

  1. जय श्री कृष्णा 🙏😊

    जवाब देंहटाएं
  2. 🌺💖🌹🥀जय श्रीकृष्ण🙏
    ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

    जवाब देंहटाएं