रविवार, 7 अप्रैल 2019

श्रीदुर्गासप्तशती श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट १७)


श्रीदुर्गादेव्यै नमो नम:

अथ श्रीदुर्गासप्तशती
श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट १७)

स्वर्गाङ्गणे वेणुमृदङ्गशङ्खभेरीनिनादैरूपगीयमाना ।
कोलाहलैराकलितातवास्तु विद्याधरीनृत्यकलासुखाय ॥ १७॥
देवि भक्तिरसभावितवृत्ते प्रीयतां यदि कुतोऽपि लभ्यते ।
तत्र लौल्यमपि सत्फलमेकञ्जन्मकोटिभिरपीह न लभ्यम् ॥ १८॥
एतैः षोडशभिः पद्यैरूपचारोपकल्पितैः ।
यः परां देवतां स्तौति स तेषां फलमाप्नुयात् ॥ १९॥

॥ इति श्रीदुर्गामानसपूजा ॥

स्वर्गके आँगनमें वेणु, मृदङ्ग, शङ्ख तथा भेरीकी मधुर ध्वनिके साथ जो संगीत होता है तथा जिसमें अनेक प्रकारके कोलाहलका शब्द व्याप्त रहता है, वह विद्याधरीद्वारा प्रदर्शित नृत्य-कला तुम्हारे सुखकी वृद्धि करे॥१७॥
देवि! तुम्हारे भक्तिरस से भावित इस पद्यमय स्तोत्रमें यदि  कहीं से भी कुछ भक्तिका लेश मिले तो उसीसे प्रसन्न हो जाओ। माँ! तुम्हारी भक्तिके लिये चित्तमें जो आकुलता होती, वही एकमात्र जीवनका फल है, वह कोटि-कोटि जन्म धारण करनेपर भी इस संसारमें तुम्हारी कृपाके बिना सुलभ नहीं होती॥ १८॥
इन उपचारकल्पित सोलह पद्यों से जो परा देवता भगवती त्रिपुरसुन्दरी का स्तवन करता है, वह उन उपचारों के समर्पण का फल  प्राप्त करता है॥१९॥

इति श्रीदुर्गामानसपूजा

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से





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