सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

जीवसम्बन्धी प्रश्नोत्तर (पोस्ट 15)


 ॐ श्रीमन्नारायणाय नम:

चौबीस तत्त्वोंके स्थूल शरीरमेंसे निकलकर जब यह जीव बाहर आता है, तब स्थूल देह तो यहीं रह जाता है। प्राणमय कोषवाला सत्रह तत्त्वोंका सूक्ष्म शरीर इसमेंसे निकलकर अन्य शरीरमें चला जाता है। भगवान्‌ने कहा है-

ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।
मनः षष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति॥
शरीरं यदवाप्नोति यञ्चाप्युत्‌क्रामतीश्वरः।
गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात्‌॥
( गीता १५ । ७ - ८ )

इस देहमें यह जीवात्मा मेरा ही सनातन अंश है और वही इन त्रिगुणमयी मायामें स्थित पांचों इन्द्रियोंको आकर्षित करता है। जैसे गन्धके स्थानसे वायु गन्धको ग्रहण करके ले जाता है, वैसे ही देहादिका स्वामी जीवात्मा भी जिस पहले शरीरको त्यागता है, उससे मनसहित इन इन्द्रियोंको ग्रहण करके, फिर जिस शरीर को प्राप्त होता है, उसमें जाता है।’

प्राण वायु ही उसका शरीर है, उसके साथ प्रधानता से पाँच ज्ञानेन्द्रियां और छठा मन (अन्तःकरण ) जाता है, इसीका विस्तार सत्रह तत्त्व हैं। यही सत्रह तत्त्वोंका शरीर शुभाशुभ कर्मोंके संस्कारके साथ जीवके साथ जाता है।

शेष आगामी पोस्ट में ..........
................००३. ०८. फाल्गुन कृ०११ सं०१९८५. कल्याण (पृ०७९३)


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - तीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - तीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१) देह-गेहमें आसक्त पुरुषोंकी अधोगतिका वर्णन कपिल उवाच ...