॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - पचीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)
देवहूति का प्रश्न तथा भगवान् कपिलद्वारा
भक्तियोग की महिमा का वर्णन
शौनक उवाच ।
कपिलस्तत्त्वसङ्ख्याता भगवान् आत्ममायया ।
जातः स्वयमजः साक्षाद् आत्मप्रज्ञप्तये नृणाम् ॥ १ ॥
न ह्यस्य वर्ष्मणः पुंसां वरिम्णः सर्वयोगिनाम् ।
विश्रुतौ श्रुतदेवस्य भूरि तृप्यन्ति मेऽसवः ॥ २ ॥
यद् यद् विधत्ते भगवान् स्वच्छन्दात्मात्ममायया ।
तानि मे श्रद्दधानस्य कीर्तन्यान्यनुकीर्तय ॥ ३ ॥
सूत उवाच -
द्वैपायनसखस्त्वेवं मैत्रेयो भगवांस्तथा ।
प्राहेदं विदुरं प्रीत आन्वीक्षिक्यां प्रचोदितः ॥ ४ ॥
मैत्रेय उवाच -
पितरि प्रस्थितेऽरण्यं मातुः प्रियचिकीर्षया ।
तस्मिन् बिन्दुसरेऽवात्सीत् भगवान् कपिलः किल ॥ ५ ॥
तमासीनमकर्माणं तत्त्वमार्गाग्रदर्शनम् ।
स्वसुतं देवहूत्याह धातुः संस्मरती वचः ॥ ६ ॥
शौनकजीने पूछा—सूतजी ! तत्त्वों की संख्या करने वाले भगवान् कपिल साक्षात् अजन्मा नारायण होकर भी लोगों को आत्मज्ञान का उपदेश करने के लिये अपनी माया से उत्पन्न हुए थे ॥ १ ॥ मैंने भगवान् के बहुत-से चरित्र सुने हैं, तथापि इन योगिप्रवर पुरुषश्रेष्ठ कपिलजी की कीर्ति को सुनते-सुनते मेरी इन्द्रियाँ तृप्त नहीं होतीं ॥ २ ॥ सर्वथा स्वतन्त्र श्रीहरि अपनी योगमाया द्वारा भक्तों की इच्छा के अनुसार शरीर धारण करके जो-जो लीलाएँ करते हैं, वे सभी कीर्तन करने योग्य हैं; अत: आप मुझे वे सभी सुनाइये, मुझे उन्हें सुननेमें बड़ी श्रद्धा है ॥ ३ ॥
सूतजी कहते हैं—मुने ! आपकी ही भाँति जब विदुर ने भी यह आत्मज्ञानविषयक प्रश्र किया, तो श्रीव्यासजी के सखा भगवान् मैत्रेय जी प्रसन्न होकर इस प्रकार कहने लगे ॥ ४ ॥
श्रीमैत्रेयजीने कहा—विदुरजी ! पिताके वनमें चले जानेपर भगवान् कपिल जी माता का प्रिय करने की इच्छासे उस बिन्दुसर तीर्थ में रहने लगे ॥ ५ ॥ एक दिन तत्त्वसमूह के पारदर्शी भगवान् कपिल कर्मकलाप से विरत हो आसनपर विराजमान थे। उस समय ब्रह्माजीके वचनोंका स्मरण करके देवहूति ने उनसे कहा ॥ ६ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💖🥀जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्रीपरमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!