शुक्रवार, 27 जून 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - अट्ठाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - अट्ठाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

अष्टाङ्गयोग की विधि

शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य विजितासन आसनम् ।
तस्मिन् स्वस्ति समासीन ऋजुकायः समभ्यसेत् ॥ ८ ॥
प्राणस्य शोधयेन्मार्गं पूरकुम्भकरेचकैः ।
प्रतिकूलेन वा चित्तं यथा स्थिरं अचञ्चलम् ॥ ९ ॥
मनोऽचिरात्स्याद् विरजं जितश्वासस्य योगिनः ।
वाय्वग्निभ्यां यथा लोहं ध्मातं त्यजति वै मलम् ॥ १० ॥
प्राणायामैः दहेद् दोषान् धारणाभिश्च किल्बिषान् ।
प्रत्याहारेण संसर्गान् ध्यानेनान् ईश्वरान्गुणान् ॥ ११ ॥

पहले आसन को जीते, फिर प्राणायाम के अभ्यास के लिये पवित्र देश में कुश-मृगचर्मादि से युक्त आसन बिछावे । उसपर शरीरको सीधा और स्थिर रखते हुए सुखपूर्वक बैठकर अभ्यास करे॥८॥ आरम्भ में पूरक, कुम्भक और रेचक क्रम से अथवा इसके विपरीत रेचक, कुम्भक और पूरक करके प्राण के मार्ग का शोधन करे—जिससे चित्त स्थिर और निश्चल हो जाय ॥ ९ ॥ जिस प्रकार वायु और अग्नि से तपाया हुआ सोना अपने मल को त्याग देता है, उसी प्रकार जो योगी प्राणवायु को जीत लेता है, उसका मन बहुत शीघ्र शुद्ध हो जाता है ॥ १० ॥ अत: योगी को उचित है कि प्राणायाम से वात-पित्तादिजनित दोषों को, धारणा से पापों को, प्रत्याहार से विषयों के सम्बन्ध को और ध्यान से भगवद्विमुख करनेवाले राग-द्वेषादि दुर्गुणों को दूर करे ॥ ११ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖🥀ॐश्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव: !!
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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