मंगलवार, 15 जुलाई 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - उनतीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - उनतीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)

भक्ति का मर्म और काल की महिमा

ततो वर्णाश्च चत्वारः तेषां ब्राह्मण उत्तमः ।
ब्राह्मणेष्वपि वेदज्ञो हि, अर्थज्ञोऽभ्यधिकस्ततः ॥ ३१ ॥
अर्थज्ञात्संशयच्छेत्ता ततः श्रेयान् स्वकर्मकृत् ।
मुक्तसङ्गस्ततो भूयात् अदोग्धा धर्ममात्मनः ॥ ३२ ॥
तस्मान्मय्यर्पिताशेष क्रियार्थात्मा निरन्तरः ।
मय्यर्पितात्मनः पुंसो मयि सन्न्यस्तकर्मणः ।
न पश्यामि परं भूतं अकर्तुः समदर्शनात् ॥ ३३ ॥
मनसैतानि भूतानि प्रणमेद्बःहुमानयन् ।
ईश्वरो जीवकलया प्रविष्टो भगवानिति ॥ ३४ ॥

मनुष्यों में भी चार वर्ण श्रेष्ठ हैं; उनमें भी ब्राह्मण श्रेष्ठ है। ब्राह्मणों में वेद को जाननेवाले उत्तम हैं और वेदज्ञों में  भी वेदका तात्पर्य जाननेवाले श्रेष्ठ हैं ॥ ३१ ॥ तात्पर्य जाननेवालों से संशय निवारण करनेवाले, उनसे भी अपने वर्णाश्रमोचित धर्मका पालन करनेवाले तथा उनसे भी आसक्तिका त्याग और अपने धर्मका निष्कामभावसे आचरण करनेवाले श्रेष्ठ हैं ॥ ३२ ॥ उनकी अपेक्षा भी जो लोग अपने सम्पूर्ण कर्म, उनके फल तथा अपने शरीरको भी मुझे ही अर्पण करके भेदभाव छोडक़र मेरी उपासना करते हैं, वे श्रेष्ठ हैं। इस प्रकार मुझे ही चित्त और कर्म समर्पण करनेवाले अकत्र्ता और समदर्शी पुरुषसे बढक़र मुझे कोई अन्य प्राणी नहीं दीखता ॥ ३३ ॥ अत: यह मानकर कि जीवरूप अपने अंशसे साक्षात् भगवान्‌ ही सबमें अनुगत हैं, इन समस्त प्राणियोंको बड़े आदरके साथ मनसे प्रणाम करे ॥ ३४ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖🥀जय श्री हरि: !!🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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