रविवार, 9 दिसंबर 2018

सच्चिदानन्द रूपाय विश्वोत्पत्यादि हेतवे | तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नुमः



सच्चिदानन्द रूपाय विश्वोत्पत्यादि हेतवे | तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नुमः

 
श्रीमद्भागवत अत्यन्त गोपनीयरहस्यात्मक पुराण है। यह भगवत्स्वरूप का अनुभव करानेवाला और समस्त वेदोंका सार है। संसार में फँसे हुए जो लोग इस घोर अज्ञानान्धकार से पार जाना चाहते हैं, उनके लिये आध्यात्मिक तत्त्वों को प्रकाशित करानेवाला यह एक अद्वितीय दीपक है।
यदि आपको परम गति की इच्छा है तो अपने मुखसे ही श्रीमद्भागवत के आधे अथवा चौथाई श्लोकका भी नित्य नियमपूर्वक पाठ कीजिये ॥ ॐकार, गायत्री, पुरुषसूक्त, तीनों वेद, श्रीमद्भागवत, ‘ॐनमो भगवते वासुदेवाय’—यह द्वादशाक्षर मन्त्र, बारह मूर्तियोंवाले सूर्यभगवान्‌, प्रयाग, संवत्सररूप काल, ब्राह्मण, अग्निहोत्र, गौ, द्वादशी तिथि, तुलसी, वसन्त ऋतु और भगवान्‌ पुरुषोत्तमइन सब में बुद्धिमान् लोग वस्तुत: कोई अन्तर नहीं मानते ॥ जो पुरुष अहर्निश अर्थसहित श्रीमद्भागवत-शास्त्रका पाठ करता है, उसके करोड़ों जन्मोंका पाप नष्ट हो जाता हैइसमें तनिक भी संदेह नहीं है ॥ जो पुरुष नित्यप्रति भागवतका आधा या चौथाई श्लोक भी पढ़ता है, उसे राजसूय और अश्वमेधयज्ञों का फल मिलता है ॥ नित्य भागवतका पाठ करना, भगवान्‌ का चिन्तन करना, तुलसी को सींचना और गौ की सेवा करनाये चारों समान हैं ॥ जो पुरुष अन्तसमय में श्रीमद्भागवत का वाक्य सुन लेता है, उसपर प्रसन्न होकर भगवान्‌ उसे वैकुण्ठधाम देते हैं ॥ जो पुरुष इसे सोने के सिंहासनपर रखकर विष्णुभक्त को दान करता है, वह अवश्य ही भगवान्‌ का सायुज्य प्राप्त करता है ॥

हरिः ॐ तत्सत् !

...........(श्रीमद्भागवतमाहात्म्य ३|३३-४१)

 गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से



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