शुक्रवार, 9 जुलाई 2021

गीता और भागवत के श्रीकृष्ण


|| श्रीहरि: ||

 

गीता और भागवत के श्रीकृष्ण

 

कुछ लोग गीता के श्रीकृष्ण को निपुण तत्त्ववेत्ता, महायोगेश्वर, निर्भय योद्धा और अतुलनीय राजनीति-विशारद मानते हैं, परंतु भागवत के श्रीकृष्ण को इसके विपरीत नचैया, भोग-विलास-परायण, गाने-बजानेवाला और खिलाड़ी समझते हैं; इसीसे वे भागवत के श्रीकृष्ण को नीची दृष्टि से देखते हैं या उनको अस्वीकार करते हैं और गीता के  या महाभारत के श्रीकृष्ण को ऊँचा या आदर्श मानते हैं। वास्तव में यह बात ठीक नहीं है। श्रीकृष्ण जो भागवत के हैं, वे ही महाभारत या गीता के हैं। एक ही भगवान् की भिन्न-भिन्न स्थलों और भिन्न-भिन्न परिस्थितियोंमें  भिन्न-भिन्न लीलाएँ हैं। भागवत के श्रीकृष्ण को भोग-विलास-परायण और साधारण नचैया-गवैया समझना भारी भ्रम है। अवश्य ही भागवत की लीलामें पवित्र और महान् दिव्य प्रेम का विकास अधिक था; परंतु वहाँ भी ऐश्वर्य-लीलाकी कमी नहीं थी। असुर-वध, गोवर्द्धन-धारण, अग्नि- पान, वत्स-बालरूप-धारण आदि भगवान् की ईश्वरीय लीलाएँ ही तो हैं। नवनीत-भक्षण, सखा-सह-विहार, गोपी-प्रेम आदि तो गोलोक की दिव्य लीलाएँ हैं। इसी से कुछ भक्त भी वृन्दावनविहारी मुरलीधर रसराज प्रेममय भगवान् श्रीकृष्ण की ही उपासना करते हैं,उनकी मधुर भावना में—

 

कृष्णोऽन्यो यदुसम्भूतो यः पूर्णः सोऽस्त्यतः परः ।

वृन्दावनं परित्यज्य स क्वचिन्नैव गच्छति ।

 

यदुनन्दन श्रीकृष्ण दूसरे हैं और वृन्दावनविहारी पूर्ण श्रीकृष्ण दूसरे हैं। पूर्ण श्रीकृष्ण वृन्दावन छोड़कर कभी अन्यत्र गमन नहीं करते। बात ठीक है—

 

जिन्ह के रही भावना जैसी। प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी ॥

 

इसी प्रकार कुछ भक्त गीता के 'तोत्त्रवेत्रैकपाणि' योगेश्वर श्रीकृष्ण के ही उपासक हैं। रुचिके अनुसार उपास्यदेव के स्वरूपभेद में कोई आपत्ति नहीं; परंतु जो लोग भागवत या महाभारत के श्रीकृष्ण को वास्तवमें भिन्न-भिन्न मानते हैं या किसी एक का अस्वीकार करते हैं, उनकी बात कभी नहीं माननी चाहिये । महाभारत में भागवत के और भागवत में महाभारत के श्रीकृष्ण के एक होने के अनेक प्रमाण मिलते हैं। एक ही ग्रन्थ की एक बात मानना और दूसरी को मन के प्रतिकूल होने के कारण न मानना वास्तव में यथेच्छाचार के सिवा और कुछ भी नहीं है।

 

साधकों को इन सारे बखेड़ों से अलग रहकर भगवान् को पहचानने और अपने को 'सर्वभावेन' उनके चरणों में समर्पणकर--शरणागत होकर उन्हें प्राप्त करने की चेष्टा करनी चाहिये।

 

.............गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीराधा-माधव-चिन्तन पुस्तक (कोड 49) से

 

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