सोमवार, 23 सितंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

समुद्रसे अमृतका प्रकट होना और भगवान्‌
का मोहिनी-अवतार ग्रहण करना

ततश्चाविरभूत्साक्षाच्छ्री रमा भगवत्परा
रञ्जयन्ती दिशः कान्त्या विद्युत्सौदामनी यथा ॥ ८ ॥
तस्यां चक्रुः स्पृहां सर्वे ससुरासुरमानवाः
रूपौदार्यवयोवर्ण महिमाक्षिप्तचेतसः ॥
तस्या आसनमानिन्ये महेन्द्रो महदद्भुतम्
मूर्तिमत्यः सरिच्छ्रेष्ठा हेमकुम्भैर्जलं शुचि ॥ १०
आभिषेचनिका भूमिराहरत्सकलौषधीः
गावः पञ्च पवित्राणि वसन्तो मधुमाधवौ ॥ ११
ऋषयः कल्पयां चक्रुराभिषेकं यथाविधि
जगुर्भद्राणि गन्धर्वा नट्यश्च ननृतुर्जगुः ॥ १२
मेघा मृदङ्गपणव मुरजानकगोमुखान्
व्यनादयन्शङ्खवेणु वीणास्तुमुलनिःस्वनान् ॥ १३
ततोऽभिषिषिचुर्देवीं श्रियं पद्मकरां सतीम्
दिगिभाः पूर्णकलशैः सूक्तवाक्यैर्द्विजेरितैः ॥ १४
समुद्रः पीतकौशेय वाससी समुपाहरत्
वरुणः स्रजं वैजयन्तीं मधुना मत्तषट्पदाम् ॥ १५
भूषणानि विचित्राणि विश्वकर्मा प्रजापतिः
हारं सरस्वती पद्ममजो नागाश्च कुण्डले ॥ १६

इसके बाद शोभाकी मूर्ति स्वयं भगवती लक्ष्मीदेवी प्रकट हुर्ईं। वे भगवान्‌ की नित्यशक्ति हैं। उनकी बिजलीके समान चमकीली छटासे दिशाएँ जगमगा उठीं ॥ ८ ॥ उनके सौन्दर्य, औदार्य, यौवन, रूप-रंग और महिमासे सबका चित्त खिंच गया। देवता, असुर, मनुष्यसभी ने चाहा कि ये हमें मिल जायँ ॥ ९ ॥ स्वयं इन्द्र अपने हाथों उनके बैठनेके लिये बड़ा विचित्र आसन ले आये। श्रेष्ठ नदियोंने मूर्तिमान् होकर उनके अभिषेकके लिये सोनेके घड़ोंमें भर-भरकर पवित्र जल ला दिया ॥ १० ॥ पृथ्वीने अभिषेक के योग्य सब ओषधियाँ दीं। गौओंने पञ्चगव्य और वसन्त ऋतुने चैत्र-वैशाखमें होनेवाले सब फूल-फल उपस्थित कर दिये ॥ ११ ॥ इन सामग्रियोंसे ऋषियोंने विधिपूर्वक उनका अभिषेक सम्पन्न किया। गन्धर्वोंने मङ्गलमय संगीतकी तान छेड़ दी। नर्तकियाँ नाच-नाचकर गाने लगीं ॥ १२ ॥ बादल सदेह होकर मृदङ्ग, डमरू, ढोल, नगारे, नरसिंगे, शङ्ख, वेणु और वीणा बड़े जोरसे बजाने लगे ॥ १३ ॥ तब भगवती लक्ष्मीदेवी हाथमें कमल लेकर सिंहासनपर विराजमान हो गयीं। दिग्गजोंने जलसे भरे कलशोंसे उनको स्नान कराया। उस समय ब्राह्मणगण वेदमन्त्रोंका पाठ कर रहे थे ॥ १४ ॥ समुद्रने पीले रेशमी वस्त्र उनको पहननेके लिये दिये। वरुणने ऐसी वैजयन्ती माला समर्पित की, जिसकी मधुमय सुगन्धसे भौरे मतवाले हो रहे थे ॥ १५ ॥ प्रजापति विश्वकर्मा ने भाँति-भाँतिके गहने, सरस्वती ने मोतियोंका हार, ब्रह्माजी ने कमल और नागों ने दो कुण्डल समर्पित किये ॥ १६ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



8 टिप्‍पणियां:

  1. 🌹🌹🌹🕉️ श्री लक्ष्मी नारायणाय नमः 🙏🙏🙏

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  2. जय जय श्री राधे श्याम

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  3. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏

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  4. जय श्री हरि जय हो प्रभु जय हो

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  5. Om namo narayanay 🙏🙏🙏🙏

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  6. 🌹🥀🌷जय श्री हरि: !!🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्री लक्ष्मी नारायण नमो नमः
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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