॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)
समुद्रसे अमृतका प्रकट होना और भगवान्
का मोहिनी-अवतार ग्रहण करना
ततः कृतस्वस्त्ययनोत्पलस्रजं
नदद्द्विरेफां परिगृह्य पाणिना
चचाल वक्त्रं सुकपोलकुण्डलं
सव्रीडहासं दधती सुशोभनम् ॥ १७ ॥
स्तनद्वयं चातिकृशोदरी समं
निरन्तरं चन्दनकुङ्कुमोक्षितम्
ततस्ततो नूपुरवल्गु शिञ्जितै-
र्विसर्पती हेमलतेव सा बभौ ॥ १८ ॥
विलोकयन्ती निरवद्यमात्मनः
पदं ध्रुवं चाव्यभिचारिसद्गुणम्
गन्धर्वसिद्धासुरयक्षचारण-
त्रैपिष्टपेयादिषु नान्वविन्दत ॥ १९ ॥
इसके बाद लक्ष्मीजी ब्राह्मणोंके स्वस्त्ययन-पाठ कर चुकनेपर
अपने हाथोंमें कमलकी माला लेकर उसे सर्वगुणसम्पन्न पुरुषके गलेमें डालने चलीं।
मालाके आसपास उसकी सुगन्धसे मतवाले हुए भौंरे गुंजार कर रहे थे। उस समय
लक्ष्मीजीके मुखकी शोभा अवर्णनीय हो रही थी। सुन्दर कपोलोंपर कुण्डल लटक रहे थे।
लक्ष्मीजी कुछ लज्जाके साथ मन्द-मन्द मुसकरा रही थीं ॥ १७ ॥ उनकी कमर बहुत पतली
थी। दोनों स्तन बिलकुल सटे हुए और सुन्दर थे। उनपर चन्दन और केसरका लेप किया हुआ
था। जब वे इधर-उधर चलती थीं, तब उनके
पायजेबसे बड़ी मधुर झनकार निकलती थी। ऐसा जान पड़ता था, मानो कोई सोनेकी लता इधर-उधर घूम-फिर रही है ॥ १८ ॥ वे
चाहती थीं कि मुझे कोई निर्दोष और समस्त उत्तम गुणोंसे नित्ययुक्त अविनाशी पुरुष
मिले तो मैं उसे अपना आश्रय बनाऊँ, वरण करूँ। परंतु गन्धर्व, यक्ष, असुर, सिद्ध, चारण, देवता आदिमें
कोई भी वैसा पुरुष उन्हें न मिला ॥ १९ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
श्रीहरि
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏
जवाब देंहटाएंOm namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएं🌼🍂🌺जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण