सोमवार, 23 सितंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

समुद्रसे अमृतका प्रकट होना और भगवान्‌
का मोहिनी-अवतार ग्रहण करना

श्रीशुक उवाच
पीते गरे वृषाङ्केण प्रीतास्तेऽमरदानवाः
ममन्थुस्तरसा सिन्धुं हविर्धानी ततोऽभवत् ॥ १ ॥
तामग्निहोत्रीमृषयो जगृहुर्ब्रह्मवादिनः
यज्ञस्य देवयानस्य मेध्याय हविषे नृप ॥ २ ॥
तत उच्चैःश्रवा नाम हयोऽभूच्चन्द्र पाण्डुरः
तस्मिन्बलिः स्पृहां चक्रे नेन्द्र ईश्वरशिक्षया ॥ ३
तत ऐरावतो नाम वारणेन्द्रो विनिर्गतः
दन्तैश्चतुर्भिः श्वेताद्रे र्हरन्भगवतो महिम् ॥ ४
कौस्तुभाख्यमभूद्र त्नं पद्मरागो महोदधेः
तस्मिन्हरिः  स्पृहां चक्रे वक्षोऽलङ्करणे मणौ
ततोऽभवत्पारिजातः सुरलोकविभूषणम्
पूरयत्यर्थिनो योऽर्थैः शश्वद्भुवि यथा भवान् ॥
ततश्चाप्सरसो जाता निष्ककण्ठ्यः सुवाससः
रमण्यः स्वर्गिणां वल्गु गतिलीलावलोकनैः ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंइस प्रकार जब भगवान्‌ शङ्कर ने विष पी लिया, तब देवता और असुरोंको बड़ी प्रसन्नता हुई। वे फिर नये उत्साहसे समुद्र मथने लगे। तब समुद्रसे कामधेनु प्रकट हुई ॥ १ ॥ वह अग्निहोत्र की सामग्री उत्पन्न करनेवाली थी। इसलिये ब्रह्मलोकतक पहुँचानेवाले यज्ञके लिये उपयोगी पवित्र घी, दूध आदि प्राप्त करनेके लिये ब्रह्मवादी ऋषियोंने उसे ग्रहण किया ॥ २ ॥ उसके बाद उच्चै:श्रवा नामका घोड़ा निकला। वह चन्द्रमाके समान श्वेतवर्णका था। बलिने उसे लेनेकी इच्छा प्रकट की। इन्द्रने उसे नहीं चाहा; क्योंकि भगवान्‌ने उन्हें पहलेसे ही सिखा रखा था ॥ ३ ॥ तदनन्तर ऐरावत नामका श्रेष्ठ हाथी निकला। उसके बड़े-बड़े चार दाँत थे, जो उज्ज्वलवर्ण कैलासकी शोभाको भी मात करते थे ॥ ४ ॥ तत्पश्चात् कौस्तुभ नामक पद्मराग मणि समुद्रसे निकली। उस मणिको अपने हृदयपर धारण करनेके लिये अजित भगवान्‌ने लेना चाहा ॥ ५ ॥ परीक्षित्‌ ! इसके बाद स्वर्गलोककी शोभा बढ़ानेवाला कल्पवृक्ष निकला। वह याचकोंकी इच्छाएँ उनकी इच्छित वस्तु देकर वैसे ही पूर्ण करता रहता है, जैसे पृथ्वीपर तुम सबकी इच्छाएँ पूर्ण करते हो ॥ ६ ॥ तत्पश्चात् अप्सराएँ प्रकट हुर्ईं। वे सुन्दर वस्त्रोंसे सुसज्जित एवं गलेमें स्वर्ण-हार पहने हुए थीं। वे अपनी मनोहर चाल और विलासभरी चितवनसे देवताओंको सुख पहुँचानेवाली हुर्ईं ॥ ७ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




7 टिप्‍पणियां:

  1. जय श्रीकृष्ण

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  2. जय श्री हरि जय हो प्रभु जय हो

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  3. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌹🙏

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  4. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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  5. Shree Krishna ki Param kripa se hi kalyan hota hai, Chahe davta hon, Santa Samaaj ho Athava Saadharan manav. Arun tripathi.

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  6. Om namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏

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  7. 💐🌹🥀जय श्री हरि: !!🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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