रामकथा
कलि-पन्नग भरनी। पुनि बिबेक-पावक कहुँ अरनी
.................(मानस
1-31-6)
(रामकथा
कलिरूपी साँपके लिये भरणी
(के समान) है और विवेकरूपी अग्निको (उत्पन्न करनेको) अरणी है)
व्याख्या-
शब्दार्थ-पन्नग-सर्प, साँप। 'भरनी'-भरणीके अनेक अर्थ किये गये हैं-(१)व्रजदेशमें एक सर्पनाशक जीवविशेष होता है जो मूसेका-सा होता है। यह पक्षी सर्पको देखकर सिकुड़कर बैठ जाता है। साँप उसे मेढक
(दादुर) जानकर निगल जाता है तब वह अपनी काँटेदार
देहको फैला देता है जिससे सर्पका पेट फट जाता है और साँप मर जाता है। यथा-'तुलसी छमा गरीब की पर घर घालनिहारि।ज्यों पन्नग भरनी ग्रसेउ निकसत उदर बिदारि॥
तलसी गई गरीब की दई ताहि पर डारि। ज्यों पन्नग भरनी भषे निकरै उदर बिदारि॥"
(२) 'भरनी' नक्षत्र भी होता है जिसमें
जलकी वर्षासे सर्पका नाश होता है-'अश्विनी अश्वनाशाय भरणी सर्पनाशिनी।
कृत्तिका षड्विनाशाय यदि वर्षति रोहिणी॥'
(३) भरणीको मेदिनीकोश में 'मयूरनी'
भी लिखा है- 'भरणी मयूरपत्नी स्याद् वरटा हंसयोषिति'
इति मेदिनी।
(४) गारुडी मन्त्रको भी भरणी कहते हैं। जिससे सर्पके काटनेपर
झाड़ते हैं तो साँपका विष उतर जाता है। (५) 'वह मन्त्र जिसे सुनकर सर्प हटे तो बचे नहीं और न हटे तो जल-भुन जावे।' यथा – 'कीलो सर्पा
तेरे बामी' इत्यादि। (मानसतत्त्वविवरण)
बाबा हरीदासजी कहते हैं कि झाड़नेका मन्त्र पढ़कर कानमें 'भरणी' शब्द कहकर फूंक डालते हैं और पाँडेजी कहते हैं
कि भरणी झाड़नेका मन्त्र है।
(६) राजपूतानेकी और सर्पविष झाड़नेके लिये भरणीगान प्रसिद्ध
है। फूलकी थालीपर सरफुलईसे तरह-तरहकी गति बजाकर यह गान गाया जाता
है। (सुधाकर द्विवेदीजी) अरनी-एक काठका बना हुआ यन्त्र जो यज्ञों में आग निकालने के काम आता है।
नोट-१ (क) भरणीका अर्थ जब 'भरणी पक्षी' या 'गारुडी मन्त्र'
लेंगे तब यह भाव निकलता है कि कलिसे ग्रसित हो जानेपर भी कलिका नाश करके
जीवको उससे सदाके लिये बचा देती है। कलि का कुछ भी प्रभाव सुनने-पढ़नेवाले पर नहीं पड़ता। पुनः (ख)-'कलि कलुष विभंजनि' कहकर 'कलि पन्नग भरनी' कहनेका भाव यह है कि कथाके आश्रित श्रोता-वक्ताओंके पापोंका नाश करती है और यदि कलि इस वैरसे स्वयं कथाका ही नाश किया चाहे तो कथा उसका भी नाश करनेको
समर्थ है। अन्य सब ग्रन्थ मेंढकके समान हैं जिनको खा-खाकर वह
परक गया है। यथा-'कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रंथ।'
(७। ९७) पर यहाँ वह बात नहीं है। क्योंकि श्रीरामकथा
'भरणी पक्षी' के समान है जिसको खाकर वह पचा नहीं
सकता। इस तरह कथाको अपना रक्षक भी जनाया। [ कलिके नाशका भाव यह
है कि कलिके धर्मका नाश करती है, कलियुग तो बना ही रहता है पर
उसके धर्म नहीं व्यापते। (पं० रा० कु०)] (ग) उसका अर्थ 'भरणी नक्षत्र' या
'मयूरनी' करें तो यह भाव निकलता है कि कलिको पाते
ही वह उसका नाश कर देती है। उसको डसनेका अवसर ही नहीं देती। ऐसी यह रामकथा है। यह भी
जनाया कि कलिसे श्रीरामकथाका स्वाभाविक वैर है, वह सदा उसके नाशमें
तत्पर रहती है चाहे वह कुछ भी बाधा करे या न करे। वह कामादि विकारोंको नष्ट ही करती
है, रहने नहीं देती। (घ) इस तरह 'भरणी' शब्द देकर सूचित
किया है कि श्रीराम-कथा दोनोंका कल्याण करती है-जिन्हें कलिने ग्रास कर लिया है और जिनको अभी कलि नहीं व्यापा है उनकी भी रक्षा
करती है।
'अरनी' के दो भाग होते हैं, अरणि
वा अधरारणि और उत्तरारणि। यह शमीगर्भ अश्वत्थसे बनाया जाता है। अधरारणि नीचे होती है
और उसमें एक छेद होता है। इस छेदपर उत्तरारणि खड़ी करके रस्सीसे मथानीके समान मथी जाती
है। छेदके नीचे कुश वा कपास रख देते हैं जिसमें आग लग जाती है। इसके मथनेके समय वैदिक
मन्त्र पढ़ते हैं और ऋत्विक लोग ही इसके मथने आदिके कामोंको करते हैं। यज्ञमें प्रायः
अरणीसे निकाली हुई अग्नि ही काममें लायी जाती है। (श० सा०)
सूर्यप्रसाद
मिश्रजी लिखते हैं कि
'अरणीसे सूर्यका भी बोध होता है। सूर्यपक्षमें ऐसा अर्थ करना चाहिये
कि सूर्यके उदय होनेसे अन्धकार नष्ट हो जाता है एवं रामकथारूपी सूर्यके उदय होनेसे
हृदयस्थ अविवेकरूप अन्धकार नष्ट होकर परम पवित्र विवेक उत्पन्न होता है।' (स्कन्दपुराण काशीखण्ड अ० ९में सूर्यभगवान् के सत्तर नाम गिनाकर उनके द्वारा
उनको अर्घ्य देनेकी विशेष विधि बतायी हैं, उन नामोंमेंसे एक नाम
'अरणि' भी है। यथा-'गभस्तिहस्तस्तीब्रांशुस्तरणिः
सुमहोऽरणिः।' (८०) इस प्रकार 'अरणि' का अर्थ 'सूर्य' भी हुआ।)
टिप्पणी-१(क) कलि और कलुषके रहते विवेक
नहीं होता। इसीसे कलि और कलुष दोनोंका नाश कहकर तब विवेककी उत्पत्ति कही। (ख) 'अरणी' कहनेका भाव यह है कि
यह कथा प्रत्यक्षमें तो उपासना है परन्तु इसके अभ्यन्तर ज्ञान भरा है, जैसे अरणीके भीतर अग्नि है यद्यपि प्रकटरूपमें वह लकड़ी ही है।
......गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक
मानस पीयूष खण्ड-१ से
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर नमन एवम् आभार🙏🙏
जवाब देंहटाएंश्री राम जय राम जय जय राम
जय श्री राम जय जय सियाराम
🌸🥀🌷🥀जय श्री हरि:🙏🙏