रविवार, 22 सितंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – सातवाँ अध्याय..(पोस्ट१४)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – सातवाँ अध्याय..(पोस्ट१४)

समुद्रमन्थन का आरम्भ और भगवान्‌ शङ्कर का विषपान

श्रीशुक उवाच
एवमामन्त्र्य भगवान्भवानीं विश्वभावनः
तद्विषं जग्धुमारेभे प्रभावज्ञान्वमोदत ॥ ४१ ॥
ततः करतलीकृत्य व्यापि हालाहलं विषम्
अभक्षयन्महादेवः कृपया भूतभावनः ॥ ४२ ॥
तस्यापि दर्शयामास स्ववीर्यं जलकल्मषः
यच्चकार गले नीलं तच्च साधोर्विभूषणम् ॥ ४३ ॥
तप्यन्ते लोकतापेन साधवः प्रायशो जनाः
परमाराधनं तद्धि पुरुषस्याखिलात्मनः ॥ ४४ ॥
निशम्य कर्म तच्छम्भोर्देवदेवस्य मीढुषः
प्रजा दाक्षायणी ब्रह्मा वैकुण्ठश्च शशंसिरे ॥ ४५ ॥
प्रस्कन्नं पिबतः पाणेर्यत्किञ्चिज्जगृहुः स्म तत्
वृश्चिकाहिविषौषध्यो दन्दशूकाश्च येऽपरे ॥ ४६ ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंविश्वके जीवनदाता भगवान्‌ शङ्कर इस प्रकार सती देवीसे प्रस्ताव करके उस विषको खानेके लिये तैयार हो गये। देवी तो उनका प्रभाव जानती ही थीं, उन्होंने हृदयसे इस बातका अनुमोदन किया ॥ ४१ ॥ भगवान्‌ शङ्कर बड़े कृपालु हैं। उन्हींकी शक्तिसे समस्त प्राणी जीवित रहते हैं। उन्होंने उस तीक्ष्ण हालाहल विषको अपनी हथेलीपर उठाया और भक्षण कर गये ॥ ४२ ॥ वह विष जलका पापमल था। उसने शङ्करजीपर भी अपना प्रभाव प्रकट कर दिया, उससे उनका कण्ठ नीला पड़ गया, परंतु वह तो प्रजाका कल्याण करनेवाले भगवान्‌शङ्करके लिये भूषणरूप हो गया ॥ ४३ ॥ परोपकारी सज्जन प्राय: प्रजाका दु:ख टालनेके लिये स्वयं दु:ख झेला ही करते हैं। परंतु यह दु:ख नहीं है, यह तो सबके हृदयमें विराजमान भगवान्‌की परम आराधना है ॥ ४४ ॥
देवाधिदेव भगवान्‌ शङ्कर सबकी कामना पूर्ण करनेवाले हैं। उनका यह कल्याणकारी अद्भुत कर्म सुनकर सम्पूर्ण प्रजा, दक्षकन्या सती, ब्रह्माजी और स्वयं विष्णुभगवान्‌ भी उनकी प्रशंसा करने लगे ॥ ४५ ॥ जिस समय भगवान्‌ शङ्कर विषपान कर रहे थे, उस समय उनके हाथसे थोड़ा-सा विष टपक पड़ा था। उसे बिच्छू, साँप तथा अन्य विषैले जीवोंने एवं विषैली ओषधियोंने ग्रहण कर लिया ॥ ४६ ॥

इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायामष्टमस्कन्धेऽमृतमथने
सप्तमोऽध्यायः

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




7 टिप्‍पणियां:

  1. 🚩🚩🚩🕉️ हर हर श्री महादेव शम्भो 🙏🙏🙏🕉️ श्री उमा महेश्वराभ्याम नमः 🙏🙏🙏

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  2. जय श्री सीताराम जय हो प्रभु जय हो

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  3. 🍂🌿💐जय श्री हरि: !!🙏🙏
    जय हो उमापति नीलकंठ महादेव
    ॐ नमः शिवाय 🔱🍂🌾🙏

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  4. 🍂💐🌷जय श्री हरि: !!🙏🙏
    जय हो उमापति नीलकंठ महादेव की
    ॐ नमः शिवाय 🔱💐🌾🙏

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