सोमवार, 18 अगस्त 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - तैंतीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - तैंतीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)

देवहूतिको तत्त्वज्ञान एवं मोक्षपदकी प्राप्ति

मैत्रेय उवाच –
ईडितो भगवानेवं कपिलाख्यः परः पुमान् ।
वाचाविक्लवयेत्याह मातरं मातृवत्सलः ॥ ९ ॥

कपिल उवाच –
मार्गेणानेन मातस्ते सुसेव्येनोदितेन मे ।
आस्थितेन परां काष्ठां अचिराद् अवरोत्स्यसि ॥ १० ॥
श्रद्धत्स्वैतन्मतं मह्यं जुष्टं यद्ब्रयह्मवादिभिः ।
येन मां अभयं याया मृत्युमृच्छन्त्यतद्विदः ॥ ११ ॥

मैत्रेय उवाच -
इति प्रदर्श्य भगवान् सतीं तां आत्मनो गतिम् ।
स्वमात्रा ब्रह्मवादिन्या कपिलोऽनुमतो ययौ ॥ १२ ॥
सा चापि तनयोक्तेन योगादेशेन योगयुक् ।
तस्मिन् आश्रम आपीडे सरस्वत्याः समाहिता ॥ १३ ॥

मैत्रेयजी कहते हैं—माताके इस प्रकार स्तुति करनेपर मातृवत्सल परमपुरुष भगवान्‌ कपिलदेवजीने उनसे गम्भीर वाणीमें कहा ॥ ९ ॥
कपिलदेवजीने कहा—माताजी ! मैंने तुम्हें जो यह सुगम मार्ग बताया है, इसका अवलम्बन करने से तुम शीघ्र ही परमपद प्राप्त कर लोगी ॥ १० ॥ तुम मेरे इस मत में विश्वास करो, ब्रह्मवादी लोगों ने इसका सेवन किया है; इसके द्वारा तुम मेरे जन्म-मरणरहित स्वरूप को प्राप्त कर लोगी। जो लोग मेरे इस मतको नहीं जानते, वे जन्म-मृत्युके चक्रमें पड़ते हैं ॥ ११ ॥
मैत्रेयजी कहते हैं—इस प्रकार अपने श्रेष्ठ आत्मज्ञानका उपदेशकर श्रीकपिलदेवजी अपनी ब्रह्मवादिनी जननीकी अनुमति लेकर वहाँसे चले गये ॥ १२ ॥ तब देवहूतिजी भी सरस्वतीके मुकुटसदृश अपने आश्रममें अपने पुत्रके उपदेश किये हुए योगसाधनके द्वारा योगाभ्यास करती हुई समाधिमें स्थित हो गयीं ॥ १३ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


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