|| जय श्रीहरिः ||
मुक्ति का रहस्य..
हम सबके अनुभवकी बात है कि जब गाढ़ नींद आती है, तब कुछ भी याद नहीं रहता । रुपये, पदार्थ, कुटुम्ब, जमीन, मकान आदि कुछ भी याद नहीं रहता । ऐसी स्थितिमें हमें कोई दुःख होता है क्या ? गाढ़ नींदमें किसी भी प्राणी-पदार्थका सम्बन्ध न रहनेपर भी हमें दुःख नहीं होता अपितु सुख ही होता है । इससे सिद्ध हुआ कि संसारके सम्बन्धसे सुख नहीं होता । अभी आप सोचते हैं कि हमें धन मिल जाय, ऊँचा पद मिल जाय, मान-बड़ाई मिल जाय, भोग मिल जाय, आराम मिल जाय तो हम सुखी हो जायँगे । विचार करें कि जब गाढ़ निद्रामें किसी भी प्राणी-पदार्थसे सम्बन्ध न रहनेपर भी दुःख नहीं होता, और सुख होता है तब इन वस्तुओंकी प्राप्तिसे सुख मिल जायगा क्या ? इस बातपर गहरा विचार करें ।
जाग्रत्की वस्तु स्वप्नमें और स्वप्नकी वस्तु सुषुप्तिमें नहीं रहती । तात्पर्य यह कि जाग्रत् और स्वप्नकी वस्तुओंके बिना भी हम रहते हैं । इससे सिद्ध यह हुआ कि वस्तुओंके बिना भी हम सुखपूर्वक रह सकते हैं अर्थात् हमारा रहना वस्तु, अवस्था आदिके आश्रित नहीं है । इसलिये वस्तु, पदार्थ, व्यक्ति आदिके द्वारा हम सुखी होंगे और इनके बिना हम दुःखी होंगे‒यह बात गलत सिद्ध हो गयी । जाग्रत्में भी अनेक पदार्थोंके बिना हम रहते हैं, पर सुषुप्तिमें तो सम्पूर्ण पदार्थोंके बिना हम रहते हैं और उससे हमें शक्ति मिलती है । अच्छी गहरी नींद आनेपर स्वास्थ्य अच्छा होता है और जगनेपर व्यवहार अच्छा होता है । नींदके बिना मनुष्यका जीना कठिन है । नींद लिये बिना उसे चैन नहीं पडता । इससे सिद्ध हुआ कि सम्पूर्ण वस्तुओंके अभावके बिना हम रह नहीं सकते । वस्तुओं का अभाव बहुत आवश्यक है । अत: अनुभवके आधार पर हमारी यह मान्यता गलत सिद्ध हो गयी कि धन, सम्पत्ति, कुटुम्ब आदिके मिलनेसे ही हम सुखी होंगे और उनके बिना रह नहीं सकेंगे ।
सुषुप्ति में वस्तुओं के बिना भी हम जीते हैं । जीते ही नहीं, सुखी भी होते हैं और शरीर, इन्द्रियों, मन, बुद्धि सब में ताजगी भी आती है । जाग्रत्में जब वस्तुओंसे सम्बन्ध रहता है, तब हमारी शक्ति क्षीण होती है और नींदमें वस्तुओंका सम्बन्ध न रहनेसे शक्ति संचित होती है । वस्तुओंके सम्बन्ध-विच्छेदके बिना और नींदमें क्या होता है ? यदि जाग्रत् अवस्थामें ही हम वस्तुओंसे अलग हो जायँ, उनसे अपना सम्बन्ध न मानें, उनका आश्रय न लें, तो जीवन्मुक्त हो जायँ ! नींदमें तो बेहोशी (अज्ञान) रहती है, इसलिये उससे जीवन्मुक्त नहीं होते । सम्पूर्ण वस्तुओंसे सम्बन्ध-विच्छेद होना मुक्ति है । मुक्तिमें जो आनन्द है, वह बन्धनमें नहीं है । मुक्तिमें आनन्द होता है‒वस्तुओंसे सम्बन्ध छूटनेसे । नींदमें जब वस्तुओंको भूलनेसे भी सुख- शान्ति मिलती है, तब जानकर उनका सम्बन्ध-विच्छेद करनेसे कितनी सुख-शान्ति मिलेगी !
शरीर और संसार एक है । ये एक-दूसरे से अलग नहीं हो सकते । शरीर को संसार की और संसार को शरीर की आवश्यकता है । पर हम स्वयं (आत्मा) शरीरसे अलग हैं और शरीरके बिना भी रहते ही हैं । शरीर उत्पन्न होनेसे पहले भी हम थे और शरीर नष्ट होनेके बाद भी रहेंगे‒इस बातका पता न हो तो भी यह तो जानते ही हैं कि गाढ़ निद्रामें जब शरीरकी यादतक नहीं रहती, तब भी हम रहते हैं और सुखी रहते हैं । शरीरसे सम्बन्ध न रहनेसे शरीर स्वस्थ होता है । संसारसे सम्बन्ध-विच्छेद होनपर आप भी ठीक रहोगे और संसार भी ठीक रहेगा । दोनोंकी आफत मिट जायगी । शरीरादि पदार्थोंकी गरज और गुलामी मनसे मिटा दें तो महान् आनन्द रहेगा । इसीका नाम जीवन्मुक्ति है । शरीर, कुटुम्ब, धन आदिको रखो, पर इनकी गुलामी मत रखो । जड़ वस्तुओंकी गुलामी करनेवाला जड़से भी नीचे हो जाता है, फिर हम तो चेतन हैं । जाग्रत्, स्वप्न और सुषुप्ति‒तीनों अवस्थाओंसे हम अलग हैं । ये अवस्थाएँ बदलती रहती हैं, पर हम नहीं बदलते । हम इन अवस्थाओंको जाननेवाले हैं और अवस्थाएँ जाननेमें आनेवाली हैं । अत : इनसे अलग हैं । जैसे, छप्परको हम जानते हैं कि यह छप्पर है तो हम छप्परसे अलग हैं‒यह सिद्ध होता है । अत: हम वस्तु, परिस्थिति, अवस्था आदिसे अलग हैं‒इसका अनुभव होना ही मुक्ति है ।
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
‒---- गीता प्रेस,गोरखपुर से प्रकाशित ‘तात्त्विक प्रवचन’ पुस्तक से
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