---:श्री परमात्मने नम:---
शुभाशुभ कर्म का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है
वेद का यह निश्चित सिद्धांत है कि प्रत्येक व्यक्ति को उसके द्वारा किये गए कर्म का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है | शुभकर्म का फल शुभ और अशुभ कर्म का फल अशुभ मिलता है | यह सिद्धांत केवल मनुष्यों पर ही घटित नहीं होता प्रत्युत देवता भी इस परिधि में आते हैं | जब देवताओं को भी कर्म का फल मिलता है तो फिर मनुष्यों को मिले तो इसमें क्या आश्चर्य ! ऋग्वेद के एक ऋचा (१/३५/९) में संकेत आया है कि अपने अशुभ कर्म के कारण सवितादेव को हिरण्यपाणि होना पड़ा ..(हिरण्यपाणि: सविता) | आख्यान इस प्रकार है कि एक बार जब एक देवयाग में अध्वर्युओं ने पुरोडाश सविता देव के निमित्त प्रदान किया तो उस समय सवितादेव ने अमंत्रक ही वह पुरोडाश अपने हाथ में ग्रहण कर लिया | इस निषिद्ध कर्म के फलस्वरूप उनका वह हाथ कट गया, बाद में अध्वर्युओं ने स्वर्णनिर्मित हाथ को प्रतिष्ठित किया | इसी प्रकार उस यज्ञ में भग देवता को नेत्रविहीन होना पड़ा और पूषादेव को दंतविहीन होना पड़ा |
अत: कल्याणकामी व्यक्ति को चाहिए कि शास्त्रविहित एवं प्रशस्त उत्तम कर्मों का ही अनुष्ठान करे, निषिद्ध और निन्द्य कर्मों का अनुष्ठान कभी भी न करे | नीति मंजरी में इस आख्यान का संकेत इस प्रकार दिया गया है –
अत: कल्याणकामी व्यक्ति को चाहिए कि शास्त्रविहित एवं प्रशस्त उत्तम कर्मों का ही अनुष्ठान करे, निषिद्ध और निन्द्य कर्मों का अनुष्ठान कभी भी न करे | नीति मंजरी में इस आख्यान का संकेत इस प्रकार दिया गया है –
“शुभाशुभं कृतं कर्म भुंजते देवता अपि |
सविता हेमहस्तोऽभूद्भगोऽन्ध:पूषकोऽद्विज: ||”...(१.१५)
सविता हेमहस्तोऽभूद्भगोऽन्ध:पूषकोऽद्विज: ||”...(१.१५)
...(कल्याण नीतिसार अंक)
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