|| ॐ श्री परमात्मने नम: ||
नामका प्रभाव (02)
अमर कैसे हों ? ‘नाम-प्रसाद’‒नामकी कृपासे भगवान् शंकर अविनाशी हो गये । उनका साज देखा जाय तो महाराज ! सर्प है, मुर्देकी राख है, मुण्डमाला है । ऐसा अमंगल साज है, विचित्र ढंगका साज है ।
भगवान् शंकरके साज विचित्र हैं ! भगवान् शंकरके साज अमंगल हैं, केवल इतनी ही बात नहीं है, बड़ी आफत है महाराज ! इधर तो खुदका गहना साँप है और उधर गणेशजीका वाहन चूहा है । इधर आपका वाहन बैल है तो भवानीका वाहन सिंह है । इस प्रकार घरमें एक-दूसरेकी कितनी कलह है, इसको तो वे ही जानें । भगवान् शंकर ही निभाते हैं । विरोधी-ही-विरोधी इकट्ठे हुए हैं सभी । सर्प गलेमें बैठा है तो कार्तिकेयके मयूर है । मयूर साँपको खाने दौड़े तो साँप चूहेको खाने दौड़े । ऐसे एक-एक के वैरी हैं । यह दशा है घरमें । ऐसे साज हैं अमंगलराशि ! फिर भी मंगलराशि हैं । ‘शिव-शिव’ कहने से कल्याण हो जाय, उद्धार हो जाय, मंगल हो जाय । सदा ही सबके मंगल कर दे । इसमें कारण क्या है ? यह नाम महाराजकी कृपा है ।
“सनकादि सिद्ध मुनि जोगी ।
नाम प्रसाद ब्रह्मसुख भोगी ॥“
………..(मानस, बालकाण्ड, दोहा २६ । २)
नाम प्रसाद ब्रह्मसुख भोगी ॥“
………..(मानस, बालकाण्ड, दोहा २६ । २)
शुकदेव मुनि, वही तोता जिसने अमरकथा सुनी और सनकादि सिद्ध, मुनि और योगी लोग हरदम भगवान्का नाम लेते हुए भगवान्के चरणोंमें ही रहते हैं । सनकादि हमेशा पाँच वर्षकी बालक-अवस्थामें ही रहते हैं । ये ब्रह्माजीसे सबसे पहले प्रकट हुए सृष्टि पीछे हुई, ऐसे इतने पुराने; परंतु देखनेमें छोटे-छोटे बच्चे, चार-पाँच वर्षके । वे सदा नग्न रहनेवाले महात्माकी तरह घूमते फिरते हैं । सदैव ‘हरिः शरणम्’ ऐसे रटते रहते हैं । वे नामके प्रसाद से ब्रह्मसुख लेते हैं ।
“नारद जानेउ नाम प्रतापू ।
जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू ॥“
…………(मानस, बालकाण्ड, दोहा २६ । ३)
जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू ॥“
…………(मानस, बालकाण्ड, दोहा २६ । ३)
संसार को तो विष्णु भगवान् प्यारे लगते हैं, वे संसार का पालन-पोषण करने वाले हैं । जैसे बालकको माँ बड़ी प्यारी लगती है ‘मात्रा समं नास्ति शरीरपोषणम्’‒ शरीरका पालन करनेमें माँ के समान कोई नहीं है । कोई आफत हो तो बालक को माँ याद आती है । हम भाई-बहन जितने हैं, हम सबका पालन-पोषण माँ ने ही किया है । माँ की तरह संसारमात्रका पालन करनेवाली शक्ति (माँ) है भगवान् हरि (विष्णु) । नारदजी भगवान्के नामका कीर्तन करते हैं । इस नामके कारण भगवान् विष्णुको और भगवान् शंकरको भी प्यारे लगने लगे । इस प्रकार सबको प्रिय लगनेवाले नारदजी महाराज हो गये ।
राम ! राम !! राम !!!
(शेष आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “मानस में नाम-वन्दना” पुस्तकसे
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “मानस में नाम-वन्दना” पुस्तकसे
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