!!श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम !!
"राम त्वमेव भुवनानि विधाय तेषां
संरक्षणाय सुरमानुषतिर्यगादीन् ।
देहान् बिभर्षि न च देहगुणैर्विलिप्तस्-
त्वत्तो बिभेत्यखिलमोहकरी च माया ॥"
संरक्षणाय सुरमानुषतिर्यगादीन् ।
देहान् बिभर्षि न च देहगुणैर्विलिप्तस्-
त्वत्तो बिभेत्यखिलमोहकरी च माया ॥"
(हे राम ! इन सम्पूर्ण भुवनों की रचना करके आप ही इनकी रक्षा के लिए देवता,मनुष्य और तिर्यगादि योनियों में शरीर धारण करते हैं, तथापि देह के गुणों से आप लिप्त नहीं होते | सम्पूर्ण संसार को मोहित करने वाली माया भी आपसे सदा डरती रहती है)
......... (गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक अध्यात्मरामायण से--२|९|९२)
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