हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे | हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!
भाइयो
! इन्द्रियों से जो सुख भोगा जाता है, वह तो—जीव चाहे जिस योनि में रहे—प्रारब्ध के अनुसार
सर्वत्र वैसे ही मिलता रहता है, जैसे बिना किसी प्रकार का
प्रयत्न किये, निवारण करने पर भी दु:ख मिलता है ॥ इसलिये सांसारिक
सुख के उद्देश्य से प्रयत्न करने की कोई आवश्यकता नहीं है। क्योंकि स्वयं
मिलनेवाली वस्तु के लिये परिश्रम करना आयु और शक्ति को व्यर्थ गँवाना है। जो इनमें
उलझ जाते हैं, उन्हें भगवान् के परम कल्याण-स्वरूप चरणकमलों
की प्राप्ति नहीं होती ॥
सर्वत्र
लभ्यते दैवाद् यथा दुःखमयत्नतः ॥
तत्प्रयासो
न कर्तव्यो यत आयुर्व्ययः परम् ।
न
तथा विन्दते क्षेमं मुकुन्दचरणाम्बुजम् ॥
....... श्रीमद्भागवतमहापुराण
०७/०६/३-४
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