विवेकीजन सङ्ग या आसक्ति को ही आत्मा का अच्छेद्य बन्धन मानते हैं;
किन्तु वही सङ्ग या आसक्ति जब संतों-महापुरुषों के प्रति हो जाती है,
तो मोक्ष का खुला द्वार बन जाती है ॥
प्रसङ्गमजरं पाशं आत्मनः कवयो विदुः ।
स एव साधुषु कृतो मोक्षद्वारं अपावृतम् ॥
स एव साधुषु कृतो मोक्षद्वारं अपावृतम् ॥
....श्रीमद्भागवत..३|२५|२३
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