ॐ श्रीमन्नारायणाय नम:
जीवसम्बन्धी प्रश्नोत्तर (पोस्ट 15)
(लेखक: श्री जयदयालजी गोयन्दका)
चौबीस तत्त्वोंके स्थूल शरीर में से निकलकर जब यह जीव बाहर आता है, तब स्थूल देह तो यहीं रह जाता है। प्राणमय कोषवाला सत्रह तत्त्वों का सूक्ष्म शरीर इसमें से निकलकर अन्य शरीर में चला जाता है। भगवान् ने कहा है-
ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।
मनः षष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति॥
शरीरं यदवाप्नोति यञ्चाप्युत्क्रामतीश्वरः।
गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात्॥
…………………( गीता १५ । ७ - ८ )
इस देहमें यह जीवात्मा मेरा ही सनातन अंश है और वही इन त्रिगुणमयी माया में स्थित पांचों इन्द्रियों को आकर्षित करता है। जैसे गन्ध के स्थान से वायु गन्ध को ग्रहण करके ले जाता है, वैसे ही देहादि का स्वामी जीवात्मा भी जिस पहले शरीर को त्यागता है, उससे मनसहित इन इन्द्रियों को ग्रहण करके, फिर जिस शरीर को प्राप्त होता है, उसमें जाता है।’
प्राण वायु ही उसका शरीर है, उसके साथ प्रधानता से पाँच ज्ञानेन्द्रियां और छठा मन (अन्तःकरण ) जाता है, इसी का विस्तार सत्रह तत्त्व हैं। यही सत्रह तत्त्वों का शरीर शुभाशुभ कर्मों के संस्कार के साथ जीव के साथ जाता है।
शेष आगामी पोस्ट में ..........
................००३. ०८. फाल्गुन कृ०११ सं०१९८५. कल्याण (पृ०७९३)
जीवसम्बन्धी प्रश्नोत्तर (पोस्ट 15)
(लेखक: श्री जयदयालजी गोयन्दका)
चौबीस तत्त्वोंके स्थूल शरीर में से निकलकर जब यह जीव बाहर आता है, तब स्थूल देह तो यहीं रह जाता है। प्राणमय कोषवाला सत्रह तत्त्वों का सूक्ष्म शरीर इसमें से निकलकर अन्य शरीर में चला जाता है। भगवान् ने कहा है-
ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।
मनः षष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति॥
शरीरं यदवाप्नोति यञ्चाप्युत्क्रामतीश्वरः।
गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात्॥
…………………( गीता १५ । ७ - ८ )
इस देहमें यह जीवात्मा मेरा ही सनातन अंश है और वही इन त्रिगुणमयी माया में स्थित पांचों इन्द्रियों को आकर्षित करता है। जैसे गन्ध के स्थान से वायु गन्ध को ग्रहण करके ले जाता है, वैसे ही देहादि का स्वामी जीवात्मा भी जिस पहले शरीर को त्यागता है, उससे मनसहित इन इन्द्रियों को ग्रहण करके, फिर जिस शरीर को प्राप्त होता है, उसमें जाता है।’
प्राण वायु ही उसका शरीर है, उसके साथ प्रधानता से पाँच ज्ञानेन्द्रियां और छठा मन (अन्तःकरण ) जाता है, इसी का विस्तार सत्रह तत्त्व हैं। यही सत्रह तत्त्वों का शरीर शुभाशुभ कर्मों के संस्कार के साथ जीव के साथ जाता है।
शेष आगामी पोस्ट में ..........
................००३. ०८. फाल्गुन कृ०११ सं०१९८५. कल्याण (पृ०७९३)
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