गुरुवार, 18 जुलाई 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण सप्तम स्कन्ध – नवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम स्कन्ध – नवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

प्रह्लादजी के द्वारा नृसिंहभगवान्‌ की स्तुति

श्रीनारद उवाच
एवं सुरादयः सर्वे ब्रह्मरुद्र पुरः सराः
नोपैतुमशकन्मन्यु संरम्भं सुदुरासदम् ||१||
साक्षात्श्रीः प्रेषिता देवैर्दृष्ट्वा तं महदद्भुतम्
अदृष्टाश्रुतपूर्वत्वात्सा नोपेयाय शङ्किता ||२||
प्रह्रादं प्रेषयामास ब्रह्मावस्थितमन्तिके
तात प्रशमयोपेहि स्वपित्रे कुपितं प्रभुम् ||३||
तथेति शनकै राजन्महाभागवतोऽर्भकः
उपेत्य भुवि कायेन ननाम विधृताञ्जलिः ||४||
स्वपादमूले पतितं तमर्भकं
विलोक्य देवः कृपया परिप्लुतः
उत्थाप्य तच्छीर्ष्ण्यदधात्कराम्बुजं
कालाहिवित्रस्तधियां कृताभयम् ||५||
स तत्करस्पर्शधुताखिलाशुभः
सपद्यभिव्यक्तपरात्मदर्शनः
तत्पादपद्मं हृदि निर्वृतो दधौ
हृष्यत्तनुः क्लिन्नहृदश्रुलोचनः ||६||
अस्तौषीद्धरिमेकाग्र मनसा सुसमाहितः
प्रेमगद्गदया वाचा तन्न्यस्तहृदयेक्षणः ||७||

नारदजी कहते हैंइस प्रकार ब्रह्मा, शंकर आदि सभी देवगण नृसिंहभगवान्‌ के क्रोधावेश को शान्त न कर सके और न उनके पास जा सके। किसीको उसका ओर-छोर नहीं दीखता था ॥ १ ॥ देवताओं ने उन्हें शान्त करनेके लिये स्वयं लक्ष्मीजी को भेजा। उन्होंने जाकर जब नृसिंहभगवान्‌ का वह महान् अद्भुत रूप देखा, तब भयवश वे भी उनके पासतक न जा सकीं। उन्होंने ऐसा अनूठा रूप न कभी देखा और न सुना ही था ॥ २ ॥ तब ब्रह्माजीने अपने पास ही खड़े प्रह्लादको यह कहकर भेजा कि बेटा ! तुम्हारे पितापर ही तो भगवान्‌ कुपित हुए थे। अब तुम्हीं उनके पास जाकर उन्हें शान्त करो ॥ ३ ॥ भगवान्‌के परम प्रेमी प्रह्लाद जो आज्ञाकहकर और धीरेसे भगवान्‌के पास जाकर हाथ जोड़ पृथ्वीपर साष्टाङ्ग लोट गये ॥ ४ ॥ नृसिंहभगवान्‌ने देखा कि नन्हा-सा बालक मेरे चरणोंके पास पड़ा हुआ है। उनका हृदय दयासे भर गया। उन्होंने प्रह्लादको उठाकर उनके सिरपर अपना वह कर-कमल रख दिया, जो कालसर्पसे भयभीत पुरुषोंको अभयदान करनेवाला है ॥ ५ ॥ भगवान्‌के करकमलोंका स्पर्श होते ही उनके बचे-खुचे अशुभ संस्कार भी झड़ गये। तत्काल उन्हें परमात्मतत्त्वका साक्षात्कार हो गया। उन्होंने बड़े प्रेम और आनन्दमें मग्र होकर भगवान्‌के चरणकमलोंको अपने हृदयमें धारण किया। उस समय उनका सारा शरीर पुलकित हो गया, हृदयमें प्रेमकी धारा प्रवाहित होने लगी और नेत्रोंसे आनन्दाश्रु झरने लगे ॥ ६ ॥ प्रह्लादजी भावपूर्ण हृदय और निॢनमेष नयनोंसे भगवान्‌को देख रहे थे। भावसमाधिसे स्वयं एकाग्र हुए मनके द्वारा उन्होंने भगवान्‌के गुणोंका चिन्तन करते हुए प्रेमगद्गद वाणीसे स्तुति की ॥ ७ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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