॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम
स्कन्ध – आठवाँ
अध्याय..(पोस्ट०९)
नृसिंहभगवान्
का प्रादुर्भाव,
हिरण्यकशिपु का वध
एवं
ब्रह्मादि देवताओं द्वारा भगवान् की स्तुति
निशम्य
लोकत्रयमस्तकज्वरं
तमादिदैत्यं
हरिणा हतं मृधे
प्रहर्षवेगोत्कलितानना
मुहुः
प्रसूनवर्षैर्ववृषुः
सुरस्त्रियः ||३५||
तदा
विमानावलिभिर्नभस्तलं
दिदृक्षतां
सङ्कुलमास नाकिनाम्
सुरानका
दुन्दुभयोऽथ जघ्निरे
गन्धर्वमुख्या
ननृतुर्जगुः स्त्रियः ||३६||
तत्रोपव्रज्य
विबुधा ब्रह्मेन्द्र गिरिशादयः
ऋषयः
पितरः सिद्धा विद्याधरमहोरगाः ||३७||
मनवः
प्रजानां पतयो गन्धर्वाप्सरचारणाः
यक्षाः
किम्पुरुषास्तात वेतालाः सहकिन्नराः ||३८||
ते
विष्णुपार्षदाः सर्वे सुनन्दकुमुदादयः
मूर्ध्नि
बद्धाञ्जलिपुटा आसीनं तीव्रतेजसम्
ईडिरे
नरशार्दूलं नातिदूरचराः पृथक् ||३९||
युधिष्ठिर
! जब स्वर्गकी देवियोंको यह शुभ समाचार मिला कि तीनों लोकोंके सिरकी पीड़ाका
मूर्तिमान् स्वरूप हिरण्यकशिपु युद्धमें भगवान्के हाथों मार डाला गया, तब आनन्दके उल्लाससे उनके चेहरे खिल उठे। वे बार-बार भगवान्पर पुष्पोंकी
वर्षा करने लगीं ॥ ३५ ॥ आकाशमें विमानोंसे आये हुए भगवान्के दर्शनार्थी देवताओंकी
भीड़ लग गयी। देवताओंके ढोल और नगारे बजने लगे। गन्धर्वराज गाने लगे, अप्सराएँ नाचने लगीं ॥ ३६ ॥ तात ! इसी समय ब्रह्मा, इन्द्र,
शङ्कर आदि देवता, ऋषि, पितर,
सिद्ध, विद्याधर, महानाग,
मनु, प्रजापति, गन्धर्व,
अप्सराएँ, चारण, यक्ष,
किम्पुरुष, वेताल, सिद्ध,
किन्नर और सुनन्द-कुमुद आदि भगवान् के सभी पार्षद उनके पास आये। उन
लोगों ने सिरपर अञ्जलि बाँधकर सिंहासन पर विराजमान अत्यन्त तेजस्वी नृसिंहभगवान् की
थोड़ी दूरसे अलग-अलग स्तुति की ॥ ३७—३९ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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