॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – पहला
अध्याय..(पोस्ट०२)
मन्वन्तरोंका वर्णन
श्रीमनुरुवाच
येन चेतयते विश्वं विश्वं चेतयते न यम्
यो जागर्ति शयानेऽस्मिन्नायं तं वेद वेद सः ||९||
आत्मावास्यमिदं विश्वं यत्किञ्चिज्जगत्यां जगत्
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्य स्विद्धनम् ||१०||
मनु जी कहा करते थे—जिनकी चेतना के स्पर्शमात्र से यह विश्व चेतन हो जाता है, किन्तु यह विश्व जिन्हें चेतना का दान नहीं कर सकता; जो इसके सो जानेपर प्रलयमें भी जागते रहते हैं, जिनको यह नहीं जान सकता, परंतु जो इसे जानते हैं—वही परमात्मा
हैं ॥ ९ ॥ यह सम्पूर्ण विश्व और इस विश्वमें रहनेवाले समस्त चर-अचर प्राणी—सब उन परमात्मासे ही ओतप्रोत हैं। इसलिये संसारके किसी भी
पदार्थमें मोह न करके उसका त्याग करते हुए ही जीवन-निर्वाहमात्रके लिये उपभोग करना
चाहिये। तृष्णाका सर्वथा त्याग कर देना चाहिये। भला, ये संसारकी सम्पत्तियाँ किसकी हैं ? ॥ १० ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंजय श्री हरि जय हो प्रभु जी
जवाब देंहटाएं🌼💖🌹जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय