॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – चौबीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)
भगवान् के मत्स्यावतार की कथा
आस्तीर्य दर्भान् प्राक्कूलान् राजर्षिः प्रागुदंमुखः ।
निषसाद हरेः पादौ चिन्तयन् मत्स्यरूपिणः ॥ ४० ॥
ततः समुद्र उद्वेलः सर्वतः प्लावयन् महीम् ।
वर्धमानो महामेघैः वर्षद्भिः समदृश्यत ॥ ४१ ॥
ध्यायन् भगवदादेशं ददृशे नावमागताम् ।
तामारुरोह विप्रेन्द्रैः आदायौषधिवीरुधः ॥ ४२ ॥
तं ऊचुर्मुनयः प्रीता राजन् ध्यायस्व केशवम् ।
स वै नः संकटादस्मादविता शं विधास्यति ॥ ४३ ॥
सोऽनुध्यातस्ततो राज्ञा प्रादुरासीन् महार्णवे ।
एकशृंगधरो मत्स्यो हैमो नियुतयोजनः ॥ ४४ ॥
निबध्य नावं तत् श्रृंगे यथोक्तो हरिणा पुरा ।
वरत्रेणाहिना तुष्टः तुष्टाव मधुसूदनम् ॥ ४५ ॥
कुशोंका अग्रभाग पूर्वकी ओर करके राजर्षि सत्यव्रत उनपर
पूर्वोत्तर मुखसे बैठ गये और मत्स्यरूप भगवान्के चरणोंका चिन्तन करने लगे ॥ ४० ॥
इतनेमें ही भगवान् का बताया हुआ वह समय आ पहुँचा। राजाने देखा कि समुद्र अपनी
मर्यादा छोडक़र बढ़ रहा है। प्रलयकालके भयङ्कर मेघ वर्षा करने लगे। देखते-ही-देखते
सारी पृथ्वी डूबने लगी ॥ ४१ ॥ तब राजाने भगवान्की आज्ञाका स्मरण किया और देखा कि
नाव भी आ गयी है। तब वे धान्य तथा अन्य बीजोंको लेकर सप्तर्षियोंके साथ उसपर सवार
हो गये ॥ ४२ ॥ सप्तर्षियोंने बड़े प्रेमसे राजा सत्यव्रतसे कहा—‘राजन् ! तुम भगवान्का ध्यान करो। वे ही हमें इस संकटसे
बचायेंगे और हमारा कल्याण करेंगे’ ॥ ४३ ॥ उनकी
आज्ञासे राजाने भगवान्का ध्यान किया। उसी समय उस महान् समुद्रमें मत्स्यके रूपमें
भगवान् प्रकट हुए। मत्स्यभगवान्का शरीर सोनेके समान देदीप्यमान था और शरीरका
विस्तार था चार लाख कोस। उनके शरीरमें एक बड़ा भारी सींग भी था ॥ ४४ ॥ भगवान् ने
पहले जैसी आज्ञा दी थी,
उसके अनुसार वह नौका वासुकि नाग के द्वारा भगवान् के सींग में
बाँध दी गयी और राजा सत्यव्रत ने प्रसन्न होकर भगवान् की स्तुति की ॥ ४५ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
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जवाब देंहटाएं🍂🌹🌾 जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
अद्भुत है हर लीला तुम्हारी
हे नाथ नारायण वासुदेव :