॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
भगवान् वामनजी का विराट् रूप होकर
दो ही पग से पृथ्वी और स्वर्ग को नाप लेना
यद् यद्धास्यति लोकेऽस्मिन् संपरेतं धनादिकम् ।
तस्य त्यागे निमित्तं किं विप्रस्तुष्येन्न तेन चेत् ॥ ६ ॥
श्रेयः कुर्वन्ति भूतानां साधवो दुस्त्यजासुभिः ।
दध्यङ्गशिबिप्रभृतयः को विकल्पो धरादिषु ॥ ७ ॥
यैरियं बुभुजे ब्रह्मन् दैत्येन्द्रैरनिवर्तिभिः ।
तेषां कालोऽग्रसीत् लोकान् न यशोऽधिगतं भुवि ॥ ८ ॥
इस संसार में मर जाने के बाद धन आदि जो-जो वस्तुएँ साथ छोड़
देती हैं,
यदि उनके द्वारा दान आदिसे ब्राह्मणों को भी सन्तुष्ट न
किया जा सका,
तो उनके त्यागका लाभ ही क्या रहा ? ॥ ६ ॥ दधीचि, शिबि आदि महापुरुषों ने अपने परम प्रिय दुस्त्यज प्राणोंका दान करके भी
प्राणियोंकी भलाई की है। फिर पृथ्वी आदि वस्तुओंको देनेमें सोच-विचार करनेकी क्या
आवश्यकता है ?
॥ ७ ॥ ब्रह्मन् ! पहले युगमें बड़े-बड़े दैत्य- राजोंने इस
पृथ्वीका उपभोग किया है। पृथ्वीमें उनका सामना करनेवाला कोई नहीं था। उनके लोक और
परलोकको तो काल खा गया,
परंतु उनका यश अभी पृथ्वीपर ज्यों-का-त्यों बना हुआ है ॥ ८
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शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम जय हो प्रभु जय हो
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🙏
जवाब देंहटाएं🌸🌿🌷जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण