मंगलवार, 5 नवंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)

भगवान्‌ वामनजी का विराट् रूप होकर
दो ही पग से पृथ्वी और स्वर्ग को नाप लेना

सर्वात्मनीदं भुवनं निरीक्ष्य
     सर्वेऽसुराः कश्मलमापुरंग ।
सुदर्शनं चक्रमसह्यतेजो
     धनुश्च शार्ङ्‌ग स्तनयित्‍नुघोषम् ॥ ३० ॥
पर्जन्यघोषो जलजः पाञ्चजन्यः
     कौमोदकी विष्णुगदा तरस्विनी ।
विद्याधरोऽसिः शतचन्द्रयुक्तः
     तूणोत्तमावक्षयसायकौ च ॥ ३१ ॥
सुनन्दमुख्या उपतस्थुरीशं
     पार्षदमुख्याः सहलोकपालाः ।
स्फुरत्किरीटाङ्‌गदमीनकुण्डलः
     श्रीवत्सरत्‍नोत्तममेखलाम्बरैः ॥ ३२ ॥
मधुव्रतस्रग्वनमालयावृतो
     रराज राजन्भगवानुरुक्रमः ।
क्षितिं पदैकेन बलेर्विचक्रमे
     नभः शरीरेण दिशश्च बाहुभिः ॥ ३३ ॥
पदं द्वितीयं क्रमतस्त्रिविष्टपं
     न वै तृतीयाय तदीयमण्वपि ।
उरुक्रमस्याङ्‌घ्रिरुपर्युपर्यथो
     महर्जनाभ्यां तपसः परं गतः ॥ ३४ ॥

परीक्षित्‌ ! सर्वात्मा भगवान्‌ में यह सम्पूर्ण जगत् देखकर सब-के-सब दैत्य अत्यन्त भयभीत हो गये। इसी समय भगवान्‌ के पास असह्य तेजवाला सुदर्शन चक्र, गरजते हुए मेघ के समान भयङ्कर टङ्कार करनेवाला शार्ङ्गधनुष, बादलकी तरह गम्भीर शब्द करनेवाला पाञ्चजन्य शङ्ख, विष्णु भगवान्‌ की अत्यन्त वेगवती कौमोदकी गदा, सौ चन्द्राकार चिह्नोंवाली ढाल और विद्याधर नाम की तलवार, अक्षय बाणोंसे भरे दो तरकस तथा लोकपालोंके सहित भगवान्‌के सुनन्द आदि पार्षदगण सेवा करनेके लिये उपस्थित हो गये। उस समय भगवान्‌की बड़ी शोभा हुई। मस्तकपर मुकुट, बाहुओंमें बाजूबंद, कानोंमें मकराकृति कुण्डल, वक्ष:स्थलपर श्रीवत्स-चिह्न, गलेमें कौस्तुभमणि, कमरमें मेखला और कंधेपर पीताम्बर शोभायमान हो रहा था ॥ ३०३२ ॥ वे पाँच प्रकारके पुष्पोंकी बनी वनमाला धारण किये हुए थे, जिसपर मधुलोभी भौंरे गुंजार कर रहे थे। उन्होंने अपने एक पगसे बलिकी सारी पृथ्वी नाप ली, शरीरसे आकाश और भुजाओंसे दिशाएँ घेर लीं; दूसरे पगसे उन्होंने स्वर्गको भी नाप लिया। तीसरा पैर रखनेके लिये बलिकी तनिक-सी भी कोई वस्तु न बची। भगवान्‌ का वह दूसरा पग ही ऊपर की ओर जाता हुआ महर्लोक, जनलोक और तपलोकसे भी ऊपर सत्यलोक में पहुँच गया ॥ ३३-३४ ॥

इति श्रीमद्‌भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
अष्टमस्कन्धे विश्वरूपदर्शनं नाम विंशोऽध्यायः ॥ २० ॥

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से





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