बुधवार, 6 नवंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – इक्कीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – इक्कीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

बलि का बाँधा जाना

धातुः कमण्डलुजलं तदुरुक्रमस्य
पादावनेजनपवित्रतया नरेन्द्र
स्वर्धुन्यभून्नभसि सा पतती निमार्ष्टि
लोकत्रयं भगवतो विशदेव कीर्तिः ॥ ४ ॥
ब्रह्मादयो लोकनाथाः स्वनाथाय समादृताः
सानुगा बलिमाजह्रुः सङ्क्षिप्तात्मविभूतये ॥ ५ ॥
तोयैः समर्हणैः स्रग्भिर्दिव्यगन्धानुलेपनैः
धूपैर्दीपैः सुरभिभिर्लाजाक्षतफलाङ्कुरैः ॥ ६ ॥
स्तवनैर्जयशब्दैश्च तद्वीर्यमहिमाङ्कितैः
नृत्यवादित्रगीतैश्च शङ्खदुन्दुभिनिःस्वनैः ॥ ७ ॥
जाम्बवानृक्षराजस्तु भेरीशब्दैर्मनोजवः
विजयं दिक्षु सर्वासु महोत्सवमघोषयत् ॥ ८ ॥

परीक्षित्‌ ! ब्रह्मा के कमण्डलु का वही जल विश्वरूप भगवान्‌ के पाँव पखारने से पवित्र होने के कारण उन गङ्गाजी के रूप में परिणत हो गया, जो आकाश-मार्ग से पृथ्वी पर गिरकर तीनों लोकों को पवित्र करती हैं। ये गङ्गाजी क्या हैं, भगवान्‌की मूर्तिमान् उज्जवल कीर्ति ॥ ४ ॥ जब भगवान्‌ने अपने स्वरूपको कुछ छोटा कर लिया, अपनी विभूतियोंको कुछ समेट लिया, तब ब्रह्मा आदि लोकपालोंने अपने अनुचरोंके साथ बड़े आदरभावसे अपने स्वामी भगवान्‌को अनेकों प्रकारकी भेंटें समर्पित कीं ॥ ५ ॥ उन लोगोंने जल-उपहार, माला, दिव्य गन्धोंसे भरे अङ्गराग, सुगन्धित धूप, दीप, खील, अक्षत, फल, अङ्कुर, भगवान्‌ की महिमा और प्रभावसे युक्त स्तोत्र, जयघोष, नृत्य, बाजे-गाजे, गान एवं शङ्ख और दुन्दुभिके शब्दोंसे भगवान्‌ की आराधना की ॥ ६-७ ॥ उस समय ऋक्षराज जाम्बवान् मनके समान वेगसे दौडक़र सब दिशाओंमें भेरी बजा-बजाकर भगवान्‌की मङ्गलमय विजयकी घोषणा कर आये ॥ ८ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌹🍂🥀जय श्री हरि: 🙏💖🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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