॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – बाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)
बलि के द्वारा भगवान् की स्तुति और
भगवान् का उस पर प्रसन्न होना
श्रीभगवानुवाच -
ब्रह्मन् यमनुगृह्णामि तद्विशो विधुनोम्यहम् ।
यन्मदः पुरुषः स्तब्धो लोकं मां चावमन्यते ॥ २४ ॥
यदा कदाचित् जीवात्मा संसरन्निजकर्मभिः ।
नानायोनिष्वनीशोऽयं पौरुषीं गतिमाव्रजेत् ॥ २५ ॥
जन्मकर्मवयोरूप विद्यैश्वर्यधनादिभिः ।
यद्यस्य न भवेत् स्तंभः तत्रायं मदनुग्रहः ॥ २६ ॥
मानस्तम्भनिमित्तानां जन्मादीनां समन्ततः ।
सर्वश्रेयःप्रतीपानां हन्त मुह्येन्न मत्परः ॥ २७ ॥
श्रीभगवान् ने कहा—ब्रह्माजी ! मैं जिसपर कृपा करता हूँ, उसका धन छीन लिया करता हूँ । क्योंकि जब मनुष्य धन के मद से मतवाला हो जाता है, तब मेरा और लोगोंका तिरस्कार करने लगता है ॥ २४ ॥ यह जीव
अपने कर्मोंके कारण विवश होकर अनेक योनियोंमें भटकता रहता है, जब कभी मेरी बड़ी कृपासे मनुष्यका शरीर प्राप्त करता है ॥
२५ ॥ मनुष्ययोनि में जन्म लेकर यदि कुलीनता, कर्म,
अवस्था, रूप, विद्या, ऐश्वर्य और धन
आदिके कारण घमंड न हो जाय तो समझना चाहिये कि मेरी बड़ी ही कृपा है ॥ २६ ॥ कुलीनता
आदि बहुत-से ऐसे कारण हैं,
जो अभिमान और जडता आदि उत्पन्न करके मनुष्यको कल्याणके
समस्त साधनोंसे वञ्चित कर देते हैं; परंतु जो मेरे शरणागत होते हैं, वे इनसे मोहित नहीं होते ॥ २७ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌹🙏
जवाब देंहटाएंPrabhu ke adhin sab kuch hai unki maya man budhi se pare hai 🌷🙏🌺
जवाब देंहटाएंजाकौं प्रभु दारुण दुख देहि , ताकि मति पहले हर लेहि ..
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌹🙏
जवाब देंहटाएं🍂🌼🌹🥀जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंहे भक्त वत्सल करुणामय हे शरणागत वत्सल प्रभु 🙏🙏🙏🙏
नारायण नारायण नारायण नारायण
जय श्री सीताराम
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