॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)
भगवान् श्रीराम की लीलाओं का
वर्णन
बद्ध्वोदधौ रघुपतिर्विविधाद्रिकूटैः ।
सेतुं कपीन्द्रकरकम्पितभूरुहाङ्गैः ॥
सुग्रीवनीलहनुमत् प्रमुखैरनीकैः ।
लङ्कां विभीषणदृशाविशदग्रदग्धाम् ॥ १६ ॥
सा वानरेन्द्रबलरुद्धविहारकोष्ठ ।
श्रीद्वारगोपुरसदोवलभीविटङ्का ॥
निर्भज्यमानधिषणध्वजहेमकुम्भ ।
श्रृङ्गाटका गजकुलैर्ह्रदिनीव घूर्णा ॥ १७ ॥
रक्षःपतिस्तदवलोक्य निकुम्भकुम्भ ।
धूम्राक्ष दुर्मुख सुरान्तनरान्तकादीन् ॥
पुत्रं प्रहस्त मतिकाय विकम्पनादीन् ।
सर्वानुगान् समहिनोदथ कुम्भकर्णम् ॥ १८ ॥
तां यातुधानपृतनामसिशूलचाप ।
प्रासर्ष्टिशक्तिशरतोमर खड्गदुर्गाम् ॥
सुग्रीवलक्ष्मण मरुत्सुतगन्धमाद ।
नीलाङ्गदर्क्षपनसादिभिः अन्वितोऽगात् ॥ १९ ॥
तेऽनीकपा रघुपतेरभिपत्य सर्वे ।
द्वन्द्वं वरूथमिभपत्तिरथाश्वयोधैः ॥
जघ्नुर्द्रुमैः गिरिगदेषुभिरङ्गदाद्याः ।
सीताभिमर्षहतमङ्गल रावणेशान् ॥ २० ॥
भगवान् श्रीरामजी ने अनेकानेक पर्वतोंके शिखरोंसे समुद्रपर पुल
बाँधा। जब बड़े-बड़े बन्दर अपने हाथोंसे पर्वत उठा-उठाकर लाते थे,
तब उनके वृक्ष और बड़ी-बड़ी चट्टानें थर-थर काँपने लगती थीं। इसके
बाद विभीषणकी सलाहसे भगवान्ने सुग्रीव, नील, हनूमान् आदि प्रमुख वीरों और वानरीसेना के साथ लङ्का में प्रवेश किया। वह
तो श्रीहनूमान्जीके द्वारा पहले ही जलायी जा चुकी थी ॥ १६ ॥ उस समय वानरराजकी
सेनाने लङ्काके सैर करने और खेलनेके स्थान, अन्नके गोदाम,
खजाने, दरवाजे, फाटक,
सभाभवन, छज्जे और पक्षियों के रहने के स्थान तक
को घेर लिया। उन्होंने वहाँकी वेदी, ध्वजाएँ, सोनेके कलश और चौराहे तोड़-फोड़ डाले। उस समय लङ्का ऐसी मालूम पड़ रही थी,
जैसे झुंड-के-झुंड हाथियोंने किसी नदीको मथ डाला हो ॥ १७ ॥ यह देखकर
राक्षसराज रावणने निकुम्भ, कुम्भ, धूम्राक्ष,
दुर्मुख, सुरान्तक, नरान्तक,
प्रहस्त, अतिकाय, विकम्पन
आदि अपने सब अनुचरों, पुत्र मेघनाद और अन्तमें भाई
कुम्भकर्णको भी युद्ध करनेके लिये भेजा ॥ १८ ॥ राक्षसोंकी वह विशाल सेना तलवार,
त्रिशूल, धनुष, प्रास,
ऋष्टि, शक्ति, बाण,
भाले, खड्ग आदि शस्त्र-अस्त्रसे सुरक्षित और
अत्यन्त दुर्गम थी। भगवान् श्रीरामने सुग्रीव, लक्ष्मण,
हनूमान्, गन्ध-मादन, नील,
अंगद, जाम्बवान् और पनस आदि वीरोंको अपने साथ
लेकर राक्षसोंकी सेनाका सामना किया ॥ १९ ॥ रघुवंशशिरोमणि भगवान् श्रीरामके अंगद
आदि सब सेनापति राक्षसोंकी चतुरङ्गिणी सेना—हाथी, रथ, घुड़सवार और पैदलोंके साथ द्वन्द्वयुद्धकी
रीतिसे भिड़ गये और राक्षसोंको वृक्ष, पर्वतशिखर, गदा और बाणोंसे मारने लगे। उनका मारा जाना तो स्वाभाविक ही था। क्योंकि वे
उसी रावणके अनुचर थे, जिसका मङ्गल श्रीसीताजीको स्पर्श
करनेके कारण पहले ही नष्ट हो चुका था ॥ २० ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Ram
जवाब देंहटाएंJayshree krishna
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएंहरे गोविंद 💐💐
जवाब देंहटाएं🍂🌼🌹 जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंराम राम जय राम राम श्री राम राम जय राम 🙏🙏जय श्री राम जय जय सियाराम जय हनुमानजी🙏🙏🙏