रविवार, 19 अप्रैल 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –इक्कीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध इक्कीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

भरतवंश का वर्णन, राजा रन्तिदेव की कथा

गर्गाच्छिनिस्ततो गार्ग्यः क्षत्राद् ब्रह्म ह्यवर्तत ।
दुरितक्षयो महावीर्यात् तस्य त्रय्यारुणिः कविः ॥ १९ ॥
पुष्करारुणिरित्यत्र ये ब्राह्मणगतिं गताः ।
बृहत्क्षत्रस्य पुत्रोऽभूत् हस्ती यद् हस्तिनापुरम् ॥ २० ॥
अजमीढो द्विमीढश्च पुरुमीढश्च हस्तिनः ।
अजमीढस्य वंश्याः स्युः प्रियमेधादयो द्विजाः ॥ २१ ॥
अजमीढाद् बृहदिषुः तस्य पुत्रो बृहद्धनुः ।
बृहत्कायः ततस्तस्य पुत्र आसीत् जयद्रथः ॥ २२ ॥
तत्सुतो विशदस्तस्य सेनजित् समजायत ।
रुचिराश्वो दृढहनुः काश्यो वत्सश्च तत्सुताः ॥ २३ ॥
रुचिराश्वसुतः पारः पृथुसेनः तदात्मजः ।
पारस्य तनयो नीपः तस्य पुत्रशतं त्वभूत् ॥ २४ ॥
स कृत्व्यां शुककन्यायां ब्रह्मदत्तमजीजनत् ।
योगी स गवि भार्यायां विष्वक्सेनं अधात् सुतम् ॥ २५ ॥
जैगीषव्योपदेशेन योगतंत्रं चकार ह ।
उदक्सेनः ततस्तस्माद् भल्लाटो बार्हदीषवाः ॥ २६ ॥

मन्युपुत्र गर्गसे शिनि और शिनिसे गार्ग्य का जन्म हुआ। यद्यपि गार्ग्य क्षत्रिय था, फिर भी उससे ब्राह्मणवंश चला। महावीर्यका पुत्र था दुरितक्षय। दुरितक्षयके तीन पुत्र हुएत्रय्यारुणि, कवि और पुष्करारुणि। ये तीनों ब्राह्मण हो गये। बृहत्क्षत्रका पुत्र हुआ हस्ती, उसीने हस्तिनापुर बसाया था ॥ १९-२० ॥ हस्तीके तीन पुत्र थेअजमीढ, द्विमीढ और पुरुमीढ। अजमीढके पुत्रोंमें प्रियमेध आदि ब्राह्मण हुए ॥ २१ ॥ इन्हीं अजमीढके एक पुत्रका नाम था बृहदिषु। बृहदिषुका पुत्र हुआ बृहद्धनु, बृहद्धनुका बृहत्काय और बृहत्कायका जयद्रथ हुआ ॥ २२ ॥ जयद्रथका पुत्र हुआ विशद और विशदका सेनजित्। सेनजित्के चार पुत्र हुएरुचिराश्व, दृढहनु, काश्य और वत्स ॥ २३ ॥ रुचिराश्वका पुत्र पार था और पारका पृथुसेन। पारके दूसरे पुत्रका नाम नीप था। उसके सौ पुत्र थे ॥ २४ ॥ इसी नीपने (छाया) [1] शुककी कन्या कृत्वीसे विवाह किया था। उससे ब्रह्मदत्त नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। ब्रह्मदत्त बड़ा योगी था। उसने अपनी पत्नी सरस्वतीके गर्भसे विष्वक्सेन नामक पुत्र उत्पन्न किया ॥ २५ ॥ इसी विष्वक्सेनने जैगीषव्यके उपदेशसे योगशास्त्रकी रचना की। विष्वक्सेनका पुत्र था उदक्स्वन और उदक्स्वनका भल्लाद। ये सब बृहदिषुके वंशज हुए ॥ २६ ॥
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[1] श्री शुकदेवजी असंग थे, पर वे वन जाते समय एक छाया शुक रचकर छोड़ गये थे। उस छाया शुक ने ही गृहस्थोचित व्यवहार किये थे।

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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