सोमवार, 20 अप्रैल 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –बाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध बाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

पाञ्चाल, कौरव और मगधदेशीय राजाओं के वंश का वर्णन

श्रीशुक उवाच ।
मित्रेयुश्च दिवोदासात् च्यवनः तत्सुतो नृप ।
सुदासः सहदेवोऽथ सोमको जन्तुजन्मकृत् ॥ १ ॥
तस्य पुत्रशतं तेषां यवीयान् पृषतः सुतः ।
द्रुपदो द्रौपदी तस्यजज्ञे धृष्टद्युम्नादयः सुताः ॥ २ ॥
धृष्टद्युम्नात् धृष्टकेतुः भार्म्याः पाञ्चालका इमे ।
योऽजमीढसुतो ह्यन्य ऋक्षः संवरणस्ततः ॥ ३ ॥
तपत्यां सूर्यकन्यायां कुरुक्षेत्रपतिः कुरुः ।
परीक्षित् सुधनुर्जह्नुः निषधाश्व कुरोः सुताः ॥ ४ ॥
सुहोत्रोऽभूत् सुधनुषः च्यवनोऽथ ततः कृती ।
वसुस्तस्योपरिचरो बृहद्रथमुखास्ततः ॥ ५ ॥
कुशाम्बमत्स्यप्रत्यग्र चेदिपाद्याश्च चेदिपाः ।
बृहद्रथात्कुशाग्रोऽभूत् ऋषभस्तस्य तत्सुतः ॥ ६ ॥
जज्ञे सत्यहितोऽपत्यं पुष्पवान् तत्सुतो जहुः ।
अन्यस्यामपि भार्यायां शकले द्वे बृहद्रथात् ॥ ७ ॥
ये मात्रा बहिरुत्सृष्टे जरया चाभिसन्धिते ।
जीव जीवेति क्रीडन्त्या जरासन्धोऽभवत् सुतः ॥ ८ ॥
ततश्च सहदेवोऽभूत् सोमापिर्यत् श्रुतश्रवाः ।
परीक्षिद् अनपत्योऽभूत् सुरथो नाम जाह्नवः ॥ ९ ॥
ततो विदूरथस्तस्मात् सार्वभौमस्ततोऽभवत् ।
जयसेनस्तत् तनयो राधिकोऽतोऽयुताय्वभूत् ॥ १० ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! दिवोदास का पुत्र था मित्रेयु। मित्रेयु के चार पुत्र हुएच्यवन सुदास, सहदेव और सोमक। सोमक के सौ पुत्र थे, उनमें सबसे बड़ा जन्तु और सबसे छोटा पृषत था। पृषत के पुत्र द्रुपद थे, द्रुपदके द्रौपदी नामकी पुत्री और धृष्टद्युम्र आदि पुत्र हुए ॥ १-२ ॥ धृष्टद्युम्न का पुत्र था धृष्टकेतु। भर्म्याश्व के वंशमें उत्पन्न हुए ये नरपति पाञ्चालकहलाये। अजमीढका दूसरा पुत्र था ऋक्ष। उनके पुत्र हुए संवरण ॥ ३ ॥ संवरणका विवाह सूर्यकी कन्या तपतीसे हुआ। उन्हींके गर्भसे कुरुक्षेत्रके स्वामी कुरुका जन्म हुआ। कुरुके चार पुत्र हुएपरीक्षित्‌, सुधन्वा, जह्नु और निषधाश्व ॥ ४ ॥ सुधन्वासे सुहोत्र, सुहोत्रसे च्यवन, च्यवनसे कृती, कृतीसे उपरिचरवसु और उपरिचरवसुसे बृहद्रथ आदि कई पुत्र उत्पन्न हुए ॥ ५ ॥ उनमें बृहद्रथ, कुशाम्ब, मत्स्य, प्रत्यग्र और चेदिप आदि चेदिदेशके राजा हुए। बृहद्रथका पुत्र था कुशाग्र, कुशाग्रका ऋषभ, ऋषभका सत्यहित, सत्यहितका पुष्पवान् और पुष्पवान् के जहु नामक पुत्र हुआ। बृहद्रथकी दूसरी पत्नीके गर्भसे एक शरीरके दो टुकड़े उत्पन्न हुए ॥ ६-७ ॥ उन्हें माताने बाहर फेंकवा दिया। तब जरानामकी राक्षसीने जियो, जियोइस प्रकार कहकर खेल-खेलमें उन दोनों टुकड़ोंको जोड़ दिया। उसी जोड़े हुए बालकका नाम हुआ जरासन्ध ॥ ८ ॥ जरासन्धका सहदेव, सहदेव का सोमापि और सोमापिका पुत्र हुआ श्रुतश्रवा। कुरुके ज्येष्ठ पुत्र परीक्षित्‌ के कोई सन्तान न हुई। जह्नु का पुत्र था सुरथ ॥ ९ ॥ सुरथका विदूरथ, विदूरथका सार्वभौम, सार्वभौमका जयसेन, जयसेन का राधिक और राधिक का पुत्र हुआ अयुत ॥ १० ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट०९) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन देव...