रविवार, 10 मई 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – चौथा अध्याय..(पोस्ट०४)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) चौथा अध्याय..(पोस्ट०४)

कंस के हाथ से छूटकर योगमाया का
आकाश में जाकर भविष्यवाणी करना

श्रीशुक उवाच ।

एवं दुर्मंत्रिभिः कंसः सह सम्मन्त्र्य दुर्मतिः ।
ब्रह्महिंसां हितं मेने कालपाशावृतोऽसुरः ॥ ४३ ॥
सन्दिश्य साधुलोकस्य कदने कदनप्रियान् ।
कामरूपधरान् दिक्षु दानवान् गृहमाविशत् ॥ ४४ ॥
ते वै रजःप्रकृतयः तमसा मूढचेतसः ।
सतां विद्वेषमाचेरुः आरात् आगतमृत्यवः ॥ ४५ ॥
आयुः श्रियं यशो धर्मं लोकानाशिष एव च ।
हन्ति श्रेयांसि सर्वाणि पुंसो महदतिक्रमः ॥ ४६ ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! एक तो कंसकी बुद्धि स्वयं ही बिगड़ी हुई थी; फिर उसे मन्त्री ऐसे मिले थे, जो उससे भी बढक़र दुष्ट थे । इस प्रकार उनसे सलाह करके कालके फंदेमें फँसे हुए असुर कंसने यही ठीक समझा कि ब्राह्मणोंको ही मार डाला जाय ॥ ४३ ॥ उसने हिंसाप्रेमी राक्षसोंको संतपुरुषोंकी हिंसा करनेका आदेश दे दिया । वे इच्छानुसार रूप धारण कर सकते थे । जब वे इधर-उधर चले गये, तब कंसने अपने महलमें प्रवेश किया ॥ ४४ ॥ उन असुरोंकी प्रकृति थी रजोगुणी । तमोगुण के कारण उनका चित्त उचित और अनुचित के विवेक से रहित हो गया था । उनके सिर पर मौत नाच रही थी । यही कारण है कि उन्होंने संतों से द्वेष किया ॥ ४५ ॥ परीक्षित्‌ ! जो लोग महान् संत पुरुषों का अनादर करते हैं, उनका वह कुकर्म उनकी आयु, लक्ष्मी, कीर्ति, धर्म, लोक-परलोक, विषयभोग और सब-के-सब कल्याणके साधनोंको नष्ट कर देता है ॥ ४६ ॥

इति श्रीमद्‍भागवते महापुराणे पारमहंस्यां
संहितायां दशमस्कन्धे पूर्वार्धे चतुर्थोऽध्यायः ॥ ४ ॥

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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