रविवार, 19 जुलाई 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – तीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

 

श्रीमद्भागवतमहापुराण

दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) तीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

 

श्रीकृष्ण के विरह में गोपियों की दशा

 

इत्युन्मत्तवचो गोप्यः कृष्णान्वेषणकातराः ।

लीला भगवतस्तास्ता ह्यनुचक्रुस्तदात्मिकाः ॥ १४ ॥

कस्याचित्पूतनायन्त्याः कृष्णायन्त्यपिबत्स्तनम् ।

तोकयित्वा रुदत्यन्या पदाहन् शकटायतीम् ॥ १५ ॥

दैत्यायित्वा जहारान्यामेको कृष्णार्भभावनाम् ।

रिङ्गयामास काप्यङ्घ्री कर्षन्ती घोषनिःस्वनैः ॥ १६ ॥

कृष्णरामायिते द्वे तु गोपायन्त्यश्च काश्चन ।

वत्सायतीं हन्ति चान्या तत्रैका तु बकायतीम् ॥ १७ ॥

आहूय दूरगा यद्वत्कृष्णस्तमनुवर्ततीम् ।

वेणुं क्वणन्तीं क्रीडन्तीमन्याः शंसन्ति साध्विति ॥ १८ ॥

कस्याञ्चित्स्वभुजं न्यस्य चलन्त्याहापरा ननु ।

कृष्णोऽहं पश्यत गतिं ललितामिति तन्मनाः ॥ १९ ॥

मा भैष्ट वातवर्षाभ्यां तत्त्राणं विहितं मय ।

इत्युक्त्वैकेन हस्तेन यतन्त्युन्निदधेऽम्बरम् ॥ २० ॥

आरुह्यैका पदाक्रम्य शिरस्याहापरां नृप ।

दुष्टाहे गच्छ जातोऽहं खलानां ननु दण्डधृक् ॥ २१ ॥

तत्रैकोवाच हे गोपा दावाग्निं पश्यतोल्बणम् ।

चक्षूंष्याश्वपिदध्वं वो विधास्ये क्षेममञ्जसा ॥ २२ ॥

बद्धान्यया स्रजा काचित्तन्वी तत्र उलूखले ।

भीता सुदृक्पिधायास्यं भेजे भीतिविडम्बनम् ॥ २३ ॥

 

परीक्षित्‌ ! इस प्रकार मतवाली गोपियाँ प्रलाप करती हुई भगवान्‌ श्रीकृष्णको ढूँढ़ते-ढूँढ़ते कातर हो रही थीं। अब और भी गाढ़ आवेश हो जानेके कारण वे भगवन्मय होकर भगवान्‌की विभिन्न लीलाओंका अनुकरण करने लगीं ॥ १४ ॥ एक पूतना बन गयी, तो दूसरी श्रीकृष्ण बनकर उसका स्तन पीने लगीं। कोई छकड़ा बन गयी, तो किसीने बालकृष्ण बनकर रोते हुए उसे पैरकी ठोकर मारकर उलट दिया ॥ १५ ॥ कोई सखी बालकृष्ण बनकर बैठ गयी तो कोई तृणावर्त दैत्यका रूप धारण करके उसे हर ले गयी। कोई गोपी पाँव घसीट-घसीटकर घुटनों के बल बकैयाँ चलने लगी और उस समय उसके पायजेब रुनझुन-रुनझुन बोलने लगे ॥ १६ ॥ एक बनी कृष्ण, तो दूसरी बनी बलराम, और बहुत-सी गोपियाँ ग्वालबालों के रूपमें हो गयीं। एक गोपी बन गयी वत्सासुर, तो दूसरी बनी बकासुर। तब तो गोपियोंने अलग-अलग श्रीकृष्ण बनकर वत्सासुर और बकासुर बनी हुई गोपियोंको मारनेकी लीला की ॥ १७ ॥ जैसे श्रीकृष्ण वनमें करते थे, वैसे ही एक गोपी बाँसुरी बजा-बजाकर दूर गये हुए पशुओंको बुलानेका खेल खेलने लगी। तब दूसरी गोपियाँ वाह-वाहकरके उसकी प्रशंसा करने लगीं ॥ १८ ॥ एक गोपी अपनेको श्रीकृष्ण समझकर दूसरी सखीके गलेमें बाँह डालकर चलती और गोपियोंसे कहने लगती—‘मित्रो ! मैं श्रीकृष्ण हूँ। तुमलोग मेरी यह मनोहर चाल देखो॥ १९ ॥ कोई गोपी श्रीकृष्ण बनकर कहती— ‘अरे व्रजवासियो ! तुम आँधी-पानीसे मत डरो। मैंने उससे बचनेका उपाय निकाल लिया है।ऐसा कहकर गोवर्धन-धारणका अनुकरण करती हुई वह अपनी ओढऩी उठाकर ऊपर तान लेती ॥ २० ॥ परीक्षित्‌ ! एक गोपी बनी कालिय नाग, तो दूसरी श्रीकृष्ण बनकर उसके सिरपर पैर रखकर चढ़ी-चढ़ी बोलने लगी—‘रे दुष्ट साँप ! तू यहाँ से चला जा। मैं दुष्टों का दमन करनेके लिये ही उत्पन्न हुआ हूँ ॥ २१ ॥ इतनेमें ही एक गोपी बोली—‘अरे ग्वालो ! देखो, वनमें बड़ी भयङ्कर आग लगी है। तुमलोग जल्दी-से-जल्दी अपनी आँखे मूँद लो, मैं अनायास ही तुमलोगोंकी रक्षा कर लूँगा॥ २२ ॥ एक गोपी यशोदा बनी और दूसरी बनी श्रीकृष्ण। यशोदा ने फूलोंकी मालासे श्रीकृष्ण को ऊखलमें बाँध दिया। अब वह श्रीकृष्ण बनी हुई सुन्दरी गोपी हाथोंसे मुँह ढाँककर भयकी नकल करने लगी ॥ २३ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से

 



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट०२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट०२) विदुरजी का प्रश्न  और मैत्रेयजी का सृष्टिक्रम ...