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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम
स्कन्ध (पूर्वार्ध) – उनचासवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)
अक्रूरजीका
हस्तिनापुर जाना
श्रीशुक
उवाच -
स
गत्वा हास्तिनपुरं पौरवेन्द्रयशोऽङ्कितम् ।
ददर्श
तत्राम्बिकेयं सभीष्मं विदुरं पृथाम् ॥ १ ॥
सहपुत्रं
च बाह्लीकं भारद्वाजं सगौतमम् ।
कर्णं
सुयोधनं द्रौणिं पाण्डवान्सुहृदोऽपरान् ॥ २ ॥
यथावद्
उपसङ्गम्य बन्धुभिर्गान्दिनीसुतः ।
सम्पृष्टस्तैः
सुहृद्वार्तां स्वयं चापृच्छदव्ययम् ॥ ३ ॥
उवास
कतिचिन्मासान् राज्ञो वृत्तविवित्सया ।
दुष्प्रजस्याल्पसारस्य
खलच्छन्दानुवर्तिनः ॥ ४ ॥
तेज
ओजो बलं वीर्यं प्रश्रयादींश्च सद्गुणान् ।
प्रजानुरागं
पार्थेषु न सहद्भिश्चिकीर्षितम् ॥ ५ ॥
कृतं
च धार्तराष्ट्रैर्यद् गरदानाद्यपेशलम् ।
आचख्यौ
सर्वमेवास्मै पृथा विदुर एव च ॥ ६ ॥
पृथा
तु भ्रातरं प्राप्तं अक्रूरमुपसृत्य तम् ।
उवाच
जन्मनिलयं स्मरन्त्यश्रुकलेक्षणा ॥ ७ ॥
अपि
स्मरन्ति नः सौम्य पितरौ भ्रातरश्च मे ।
भगिन्यौ
भ्रातृपुत्राश्च जामयः सख्य एव च ॥ ८ ॥
भ्रात्रेयो
भगवान् कृष्णः शरण्यो भक्तवत्सलः ।
पैतृष्वसेयान्
स्मरति रामश्चाम्बुरुहेक्षणः ॥ ९ ॥
सपत्नमध्ये
शोचन्तीं वृकानां हरिणीमिव ।
सान्त्वयिष्यति
मां वाक्यैः पितृहीनांश्च बालकान् ॥ १० ॥
कृष्ण
कृष्ण महायोगिन् विश्वात्मन् विश्वभावन ।
प्रपन्नां
पाहि गोविन्द शिशुभिश्चावसीदतीम् ॥ ११ ॥
नान्यत्तव
पदाम्भोजात् पश्यामि शरणं नृणाम् ।
बिभ्यतां
मृत्युसंसाराद् ईस्वरस्यापवर्गिकात् ॥ १२ ॥
नमः
कृष्णाय शुद्धाय ब्रह्मणे परमात्मने ।
योगेश्वराय
योगाय त्वामहं शरणं गता ॥ १३ ॥
श्रीशुकदेवजी
कहते हैं—परीक्षित् ! भगवान्के आज्ञानुसार अक्रूरजी हस्तिनापुर गये। वहाँकी एक-एक
वस्तुपर पुरुवंशी नरपतियोंकी अमरकीर्ति की छाप लग रही है। वे वहाँ पहले धृतराष्ट्र,
भीष्म, विदुर, कुन्ती,
बाह्लीक और उनके पुत्र सोमदत्त, द्रोणाचार्य,
कृपाचार्य, कर्ण, दुर्योधन,
द्रोणपुत्र अश्वत्थामा, युधिष्ठिर आदि पाँचों
पाण्डव तथा अन्यान्य इष्ट-मित्रोंसे मिले ।। १-२ ।। जब गान्दिनी- नन्दन अक्रूरजी
सब इष्ट-मित्रों और सम्बन्धियोंसे भलीभाँति मिल चुके, तब
उनसे उन लोगोंने अपने मथुरावासी स्वजन-सम्बन्धियोंकी कुशल-क्षेम पूछी। उनका उत्तर
देकर अक्रूरजीने भी हस्तिनापुर- वासियोंके कुशलमङ्गलके सम्बन्धमें पूछताछ की ।। ३
।। परीक्षित् ! अक्रूरजी यह जाननेके लिये कि धृतराष्ट्र पाण्डवोंके साथ कैसा
व्यवहार करते हैं, कुछ महीनोंतक वहीं रहे। सच पूछो तो,
धृतराष्ट्रमें अपने दुष्ट पुत्रोंकी इच्छाके विपरीत कुछ भी करनेका
साहस न था। वे शकुनि आदि दुष्टोंकी सलाहके अनुसार ही काम करते थे ।। ४ ।।
अक्रूरजीको कुन्ती और विदुरने यह बतलाया कि धृतराष्ट्रके लडक़े दुर्योधन आदि
पाण्डवोंके प्रभाव, शस्त्रकौशल, बल,
वीरता तथा विनय आदि सद्गुण देखकर उनसे जलते रहते हैं। जब वे यह
देखते हैं कि प्रजा पाण्डवोंसे ही विशेष प्रेम रखती है, तब
तो वे और भी चिढ़ जाते हैं और पाण्डवोंका अनिष्ट करनेपर उतारू हो जाते हैं। अबतक
दुर्योधन आदि धृतराष्ट्रके पुत्रोंने पाण्डवोंपर कई बार विषदान आदि बहुत-से
अत्याचार किये हैं और आगे भी बहुत कुछ करना चाहते हैं ।। ५-६ ।।
जब
अक्रूरजी कुन्तीके घर आये,
तब वह अपने भाईके पास जा बैठीं। अक्रूरजीको देखकर कुन्तीके मनमें
अपने मायकेकी स्मृति जग गयी और नेत्रोंमें आँसू भर आये। उन्होंने कहा—।। ७ ।। ‘प्यारे भाई ! क्या कभी मेरे माँ-बाप,
भाई-बहिन, भतीजे, कुलकी
स्त्रियाँ और सखी-सहेलियाँ मेरी याद करती हैं ? ।। ८ ।।
मैंने सुना है कि हमारे भतीजे भगवान् श्रीकृष्ण और कमलनयन बलराम बड़े ही
भक्तवत्सल और शरणागत-रक्षक हैं। क्या वे कभी अपने इन फुफेरे भाइयोंको भी याद करते
हैं ? ।। ९ ।। मैं शत्रुओंके बीच घिरकर शोकाकुल हो रही हूँ।
मेरी वही दशा है, जैसे कोई हरिनी भेडिय़ोंके बीचमें पड़ गयी
हो। मेरे बच्चे बिना बापके हो गये हैं। क्या हमारे श्रीकृष्ण कभी यहाँ आकर मुझको
और इन अनाथ बालकोंको सान्त्वना देंगे ? ।। १० ।।
(श्रीकृष्णको अपने सामने समझकर कुन्ती कहने लगीं—) ‘सच्चिदानन्दस्वरूप
श्रीकृष्ण ! तुम महायोगी हो, विश्वात्मा हो और तुम सारे
विश्वके जीवनदाता हो। गोविन्द ! मैं अपने बच्चोंके साथ दु:ख-पर-दु:ख भोग रही हूँ।
तुम्हारी शरणमें आयी हूँ। मेरी रक्षा करो। मेरे बच्चोंको बचाओ ।। ११ ।। मेरे
श्रीकृष्ण ! यह संसार मृत्युमय है और तुम्हारे चरण मोक्ष देनेवाले हैं। मैं देखती
हूँ कि जो लोग इस संसारसे डरे हुए हैं, उनके लिये तुम्हारे
चरणकमलोंके अतिरिक्त और कोई शरण और कोई सहारा नहीं है ।। १२ ।। श्रीकृष्ण ! तुम
मायाके लेशसे रहित परम शुद्ध हो। तुम स्वयं परब्रह्म परमात्मा हो। समस्त साधनों,
योगों और उपायोंके स्वामी हो तथा स्वयं योग भी हो। श्रीकृष्ण ! मैं
तुम्हारी शरणमें आयी हूँ। तुम मेरी रक्षा करो’ ।। १३ ।।
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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