रविवार, 18 दिसंबर 2022

शिव और आसुरि को गोपीरूप से रासमण्डल में श्रीकृष्ण का दर्शन (पोस्ट 01)


 

।। श्रीराधाकृष्णाभ्याम् नम: ।।

 

शिव और आसुरि को गोपीरूप से 

रासमण्डल में श्रीकृष्ण का दर्शन

(पोस्ट 01)

 

नारदजी कहते हैं -- गोपीगणों के साथ यमुनातट का दृश्य देखते हुए श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण, रास-विहार के लिये मनोहर वृन्दावन में आये । श्रीहरि के वरदान से वृन्दावन की ओषधियाँ विलीन हो गयीं और वे सब की सब ब्रजाङ्गना होकर, एक यूथ के रूप में संघटित हो, रासगोष्ठी में सम्मिलित हो गयीं। मिथिलेश्वर ! लतारूपिणी गोपियों का समूह विचित्र कान्ति से सुशोभित था । उन सबके साथ वृन्दावनेश्वर श्रीहरि वृन्दावन में विहार करने लगे । कदम्ब–वृक्षों से आच्छादित कालिन्दी के सुरम्य तट पर सब ओर शीतल, मन्द, सुगन्ध वायु चलकर उस स्थान को सुगन्धपूर्ण कर रही थी । वंशीवट उस सुन्दर पुलिन की

रमणीयता को बढ़ा रहा था। रास के श्रम से थके हुए श्रीकृष्ण वहीं श्रीराधा के साथ आकर बैठे।

उस समय गोपाङ्गनाओं के साथ-साथ आकाशस्थित देवता भी वीणा, ताल, मृदङ्ग, मुरचंग आदि भाँति-भाँति के वाद्य बजा रहे थे तथा जय-जयकार करते हुए दिव्य फूल बरसा रहे थे। गोप- सुन्दरियाँ श्रीहरि को आनन्द प्रदान करती हुई उनके उत्तम यश गाने लगीं।

कुछ गोपियाँ मेघमल्लार नामक राग गातीं तो अन्य गोपियाँ दीपक राग सुनाती थीं । राजन्! कुछ गोपियों ने क्रमशः मालकोश, भैरव, श्रीराग तथा हिन्दोल राग का सात स्वरों के साथ गान किया । नरेश्वर ! उनमें से कुछ गोपियाँ तो अत्यन्त भोली-भाली थीं और कुछ मुग्धाएँ थीं । कितनी ही प्रेमपरायणा गोपसुन्दरियाँ प्रौढा नायिका की श्रेणी में आती थीं । उन सबके मन श्रीकृष्ण में लगे थे। कितनी ही गोपाङ्गनाएँ जारभावसे गोविन्द- की सेवा करती थीं।

कोई श्रीकृष्ण के साथ गेंद खेलने लगीं, कुछ श्रीहरि के साथ रहकर परस्पर फूलोंसे क्रीड़ा करने लगीं। कितनी ही गोपाङ्गनाएँ पैरों में नूपुर धारण करके परस्पर नृत्य-क्रीड़ा करती हुई नूपुरों की झंकार के साथ-साथ श्रीकृष्ण के अधरामृत का पान कर लेती थीं। कितनी ही गोपियाँ योगियों के लिये भी दुर्लभ श्रीकृष्ण को दोनों भुजाओं से पकड़कर हँसती हुई अत्यन्त निकट आ जातीं और उनका गाढ़ आलिङ्गन करती थीं ॥ १-१३ ॥

इस प्रकार परम मनोहर वृन्दावनाधीश्वर यदुराज भगवान् श्रीहरि केसर का तिलक धारण किये, गोपियों के साथ वृन्दावनमें विहार करने लगे। कुछ गोपाङ्गनाएँ वंशीधर की बाँसुरी के साथ वीणा बजाती थीं और कितनी ही मृदङ्ग बजाती हुई भगवान्‌ के गुण गाती थीं।

कुछ श्रीहरि के सामने खड़ी हो मधुर स्वर से खड़ताल बजातीं और बहुत-सी सुन्दरियाँ माधवी लताके नीचे चंग बजाती हुई श्रीकृष्णके साथ सुस्थिर- भावसे गीत गाती थीं । वे भूतल पर सांसारिक सुख को सर्वथा भुलाकर वहाँ रम रही थीं। कुछ गोपियाँ लतामण्डपों में श्रीकृष्ण के हाथ को अपने हाथ में लेकर इधर-उधर घूमती हुई वृन्दावन की शोभा निहारती थीं ।

किन्हीं गोपियों के हार लता – जाल से उलझ जाते, तब गोविन्द उनके वक्षःस्थल का स्पर्श करते हुए उन हारों को लता–जालों से पृथक् कर देते थे। गोप सुन्दरियों की नासिका में जो नकबेसरें थीं, उनमें मोती की लड़ियाँ पिरोयी गयी थीं। उनको तथा उनकी अलकावलियों को श्यामसुन्दर स्वयं सँभालते और धीरे-धीरे सुलझाकर सुशोभन बनाते रहते थे। माधव के चबाये हुए सुगन्धयुक्त ताम्बूल में से आधा लेकर तत्काल गोपसुन्दरियाँ भी चबाने लगती थीं। अहो ! उनका कैसा महान् तप था ! कितनी ही गोपियाँ हँसती हुई श्यामसुन्दर के कपोलोंपर अपनी दो अँगुलियों से धीरे-धीरे छूतीं और कोई हँसती हुई बलपूर्वक हलका-सा आघात कर बैठती थीं । कदम्ब वृक्षों के नीचे पृथक्-पृथक् सभी गोपाङ्गनाओं के साथ उनका क्रीडा-विनोद चल रहा था ॥ ०१ – २१ ॥

 

.............शेष आगामी पोस्ट में

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “श्रीगर्ग-संहिता”  पुस्तककोड 2260  (वृन्दावन खण्ड-अध्याय 24)



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