ॐ श्रीमन्नारायणाय नम:
मायासहित ब्रह्ममें लय होनेके कारण उस समय जीवका सम्बन्ध सुखसे होता है। इसीको आनन्दमय कोष कहते हैं। इसीसे इस अवस्थासे जागनेपर यह कहता है कि ‘मैं बहुत सुखसे सोया,’ उसे और किसी बातका ज्ञान नहीं था, यही अज्ञान है। इस अज्ञानका नाम ही माया-प्रकृति है। सुखसे सोया, इससे सिद्ध होता है कि उसे आनन्दका अनुभव था। सुखरूपमें नित्य स्थित होनेपर भी वह प्रकृति या अज्ञानमें रहने के कारण वापस आता है। घटमें जल भरकर उसका मुख अच्छी तरह बन्द करके उसे अनन्त जलके समुद्रमें छोड़ दिया गया और फिर वापस निकाला तब वह घड़ेके अन्दर ज्योंका त्यों बाहर निकल आया, घड़ा न होता तो वह जल समुद्र के अनन्त जलमें मिलकर एक हो जाता। इसीप्रकार अज्ञानमें रहनेके कारण सुखरूप ब्रह्ममें जानेपर भी जीवको ज्योंका त्यों लौट आना पड़ता है। अस्तु !
शेष आगामी पोस्ट में ..........
................००३. ०८. फाल्गुन कृ०११ सं०१९८५. कल्याण (पृ०७९३
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