नाथ !
आप स्वरूप से निष्क्रिय होनेपर भी माया के द्वारा सारे संसार का व्यवहार चलानेवाले हैं तथा थोड़ी-सी उपासना करनेवाले पर भी समस्त अभिलषित वस्तुओं की वर्षा करते रहते हैं। आपके चरणकमल वन्दनीय हैं, मैं आपको बार-बार नमस्कार करता हूँ ॥
तं त्वानुभूत्योपरतक्रियार्थं
स्वमायया वर्तितलोकतन्त्रम् ।
नमाम्यभीक्ष्णं नमनीयपाद
सरोजमल्पीयसि कामवर्षम् ॥ २१ ॥
(श्रीमद्भागवत ३|२१|२१)
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