गुरुवार, 16 फ़रवरी 2023

श्रीकृष्णाय वयं नुम:


नाथ ! 

आप स्वरूप से निष्क्रिय होनेपर भी माया के द्वारा सारे संसार का व्यवहार चलानेवाले हैं तथा थोड़ी-सी उपासना करनेवाले पर भी समस्त अभिलषित वस्तुओं की वर्षा करते रहते हैं। आपके चरणकमल वन्दनीय हैं, मैं आपको बार-बार नमस्कार करता हूँ ॥ 

तं त्वानुभूत्योपरतक्रियार्थं
     स्वमायया वर्तितलोकतन्त्रम् ।
नमाम्यभीक्ष्णं नमनीयपाद
     सरोजमल्पीयसि कामवर्षम् ॥ २१ ॥

(श्रीमद्भागवत ३|२१|२१)


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