बुधवार, 22 मार्च 2023

अथ देव्याः कवचम्‌ (पोस्ट ०१)


विनियोग

ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप्‌ छन्दः, चामुण्डा देवता, अंगन्यासोक्तमातरो बीजम्‌, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्‌, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठांगत्वेन जपे विनियोगः।

॥ ॐ नमश्चण्डिकायै॥

मार्कण्डेय उवाच

ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्‌।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥१॥

ब्रह्मोवाच

अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्‌।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥२॥
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्‌॥३॥
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्‌॥४॥
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥५॥

ॐ चण्डिका देवी को नमस्कार है।

मार्कण्डेय जी ने कहा – पितामह ! जो इस संसार में परम गोपनीय तथा मनुष्यों की सब प्रकार से रक्षा करनेवाला है और जो अब तक आपने दूसरे किसी के सामने प्रकट नहीं किया हो, ऐसा कोई साधन मुझे बताइये॥१॥
ब्रह्माजी बोले – ब्रह्मन् ! ऐसा साधन तो एक देवीका कवच ही है ,जो गोपनीयसे भी परम गोपनीय,पवित्र तथा सम्पूर्ण प्राणियों का उपकार करनेवाला है । महामुने ! उसे श्रवण करो ॥२॥ देवी की नौ मूर्तियाँ हैं, जिन्हें ‘नवदुर्गा’ कहते हैं। उनके पृथक्-पृथक् नाम बतलाये जाते हैं । प्रथम नाम ‘ शैलपुत्री ’ है । दूसरी मूर्तिका नाम ‘ ब्रह्मचारिणी ’ है। तीसरा स्वरूप ‘ चंद्रघण्टा ’ के नाम से प्रसिद्ध है। चौथी मूर्ति को ‘ कूष्माण्डा ’ कहते हैं। पाँचवीं दुर्गा का नाम ‘ स्कन्दमाता’ है । देवी के छठे रूपको ‘ कात्यायनी ’ कहते है। सातवाँ ‘कालरात्रि’ और आठवाँ स्वरूप ‘महागौरी ’ के नाम से प्रसिद्ध है । नवीं दुर्गा का नाम ‘ सिद्धिदात्री ’ है । ये सब नाम सर्वज्ञ महात्मा वेद भगवान के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं ॥२-५॥

शेष आगामी पोस्ट में --
................गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक (कोड 1281) से


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