शुक्रवार, 24 मार्च 2023

अथ देव्याः कवचम्‌ (पोस्ट ०५)


दन्तान्‌ रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके॥२५॥
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमंगला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥२६॥
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद् बाहू मे व्रजधारिणी॥२७॥
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चांगुलीषु च।
नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी॥२८॥
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥२९॥
नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी॥३०॥

कौमारी दाँतों की और चण्डिका कंठप्रदेश की रक्षा करे । चित्रघण्टा गले की घाँटी की और महामाया तालु में रहकर रक्षा करे ॥२५॥ कामाक्षी ठोढ़ी की और सर्वमंगला मेरी वाणी की रक्षा करे । भद्रकाली ग्रीवा में और धनुर्धरी पृष्ठवंश ( मेरुदण्ड ) - में रहकर रक्षा करे ॥२६॥कण्ठ के बाहरी भाग में नीलग्रीवा और कण्ठ की नली में नलकूबरी रक्षा करे । दोनों कंधोंमें खड्गिनी और मेरी दोनों भुजाओं की वज्रधारिणी रक्षा करे ॥२७॥दोनों हाथों में दंडिनी और अंगुलियों में अम्बिका रक्षा करे । शूलेश्वरी नखों की रक्षा करे । कुलेश्वरी कुक्षि (पेट ) – में रहकर रक्षा करे ॥२८॥ महादेवी दोनों स्तनों की और शोक विनाशिनी देवी मन की रक्षा करे । ललिता देवी हृदय में और शूलधारिणी उदर में रहकर रक्षा करे ॥२९॥ नाभि में कामिनी और गुह्यभाग की गुह्येश्वरी रक्षा करे । पूतना और कामिका लिंगकी और महिषवाहिनी गुदा की रक्षा करे ॥३०॥

शेष आगामी पोस्ट में --
............गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक (कोड 1281) से


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