|| ॐ श्री परमात्मने नम: ||
‘नामास्तीति निषिद्धवृत्तिविहितत्यागौ’‒--
(८) निषिद्ध आचरण करना और (९) विहित कर्मोंका त्याग कर देना ।
जैसे, हम नाम-जप करते हैं तो झूठ-कपट कर लिया,दूसरों को धोखा दे दिया, चोरी कर ली, दूसरों का हक मार लिया तो इसमें क्या पाप लगेगा । अगर लग भी जाय तो नामके सामने सब खत्म हो जायगा; क्योंकि नाममें पापोंके नाश करनेकी अपार शक्ति है‒इस भावसे नामके सहारे निषिद्ध आचरण करना नामापराध है ।
भगवान् का नाम लेते हैं । अब संध्या की क्या जरूरत है ? गायत्री की क्या जरूरत है ? श्राद्ध की क्या जरूरत है ? तर्पण की क्या जरूरत है ? क्या इस बात की जरूरत है ? इस प्रकार नामके भरोसे शास्त्र-विधि का त्याग करना भी नाम महाराज का अपराध है । यह नहीं छोड़ना चाहिये । अरे भाई ! यह तो कर देना चाहिये । शास्त्रने आज्ञा दी है । गृहस्थोंके लिये जो बताया है, वह करना चाहिये ।
नाम्नोऽस्ति यावती शक्तिः पापनिर्हरणे हरेः ।
तावत् कर्तुं न शक्नोति पातकं पातकी जनः ॥
भगवान् के नाम में इतने पापों के नाश करने की शक्ति है कि उतने पाप पापी कर नहीं सकता । लोग कहते हैं कि अभी पाप कर लो, ठगी-धोखेबाजी कर लो, पीछे राम-राम कर लेंगे तो नाम उसके पापों का नाश नहीं करेगा । क्योंकि उसने तो भगवन्नाम को पापों की वृद्धिमें हेतु बनाया है । भगवान् के नाम के भरोसे पाप किये हैं, उसको नाम कैसे दूर करेगा ?
इस विषय में हमने एक कहानी सुनी है । एक कोई सज्जन थे । उनको अंग्रेजों से एक अधिकार मिल गया था कि जिस किसीको फाँसी होती हो, अगर वहाँ जाकर खड़ा रह जाय तो उसके सामने फाँसी नहीं दी जायगी‒ऐसी उसको छूट दी हुई थी । उसकी लड़की जिसको ब्याही थी, वह दामाद उद्दण्ड हो गया । चोरी भी करे, डाका भी डाले,अन्याय भी करे । उसकी स्त्री ने मना किया तो वह कहता है क्या बात है ? तेरा बाप, अपनी बेटी को विधवा होने देगा क्या ? उसका जवाँई हूँ ।
उस लड़की ने अपने पिताजी से कह दिया‒ ‘पिताजी ! आपके जवाँई तो आजकल उद्दण्ड हो गये हैं ? कहना मानते हैं नहीं । ससुर ने बुलाकर कहा कि ऐसा मत करो, तो कहने लगा‒‘जब आप हमारे ससुर हैं, तो मेरेको किस बातका भय है ।’ ऐसा होते-होते एक बार उसका जवाँई किसी अपराध में पकड़ा गया और उसे फाँसीकी सजा हो गयी । जब लडकी को पता लगा तो उसने आकर कहा‒पिताजी ! मैं विधवा हो जाऊँगी । पिताजी कहते हैं‒बेटी ! तू आज नहीं तो कल, एक दिन विधवा हो जायगी । उसकी रक्षा मैं कहाँतक करूँ । मेरेको अधिकार मिला है, वह दुरुपयोग करनेके लिये नहीं है । बेटी के मोह में आकर पाप का अनुमोदन करूँ, पाप की वृद्धि करूँ । यह बात नहीं होगी । वे नहीं गये ।
ऐसे ही नाम महाराजके भरोसे कोई पाप करेगा तो नाम-महाराज वहाँ नहीं जायँगे । उसका वज्रलेप पाप होगा,बड़ा भयंकर पाप होगा ।
नारायण ! नारायण !!
(शेष आगामी पोस्ट में)
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “भगवन्नाम” पुस्तकसे
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