रविवार, 18 जून 2023

गीता में भगवान्‌ की न्यायकारिता और दयालुता (पोस्ट०५)

!! जय श्रीहरि :!!

शंका‒

श्रुतिमें आता है कि यह ईश्वर जिसको ऊर्ध्वगतिमें ले जाना चाहता है, उससे शुभ-कर्म कराता है और जिसको अधोगतिमें ले जाना चाहता है, उससे अशुभकर्म कराता है‒‘एष ह्येव साधु कर्म कारयति तं यमेभ्यो लोकेभ्य उन्निनीषते एष ह्येवासाधु कर्म कारयति तं यमधो निनीषते’ (कौषीतकि॰ ३ । ८) । अतः इसमें भगवान्‌ की न्यायकारिता और दयालुता क्या हुई ? केवल पक्षपात, विषमता ही हुई !

समाधान‒

इस श्रुतिका तात्पर्य शुभ-कर्म करवाकर ऊर्ध्वगति और अशुभ-कर्म करवाकर अधोगति करनेमें नहीं है, प्रत्युत प्रारब्धके अनुसार कर्मफल भुगताकर उसको शुद्ध करनेमें है अर्थात् जीव अपने शुभ-अशुभ कर्मोंका फल जिस तरहसे भोग सके, उसी तरहसे परिस्थिति और बुद्धि बना देते हैं । जैसे, शुभ कर्मोंके अनुसार किसी व्यापारीको मुनाफा होनेवाला है तो उस समय भगवान् वैसी ही परिस्थिति और बुद्धि बना देते हैं, जिससे वह सस्ते दामोंमें चीजें खरीदेगा और मँहगे दामोंमें बेचेगा; अतः उसको खरीद और बिक्री‒दोनोंमें मुनाफा-ही-मुनाफा होगा । ऐसे ही अशुभ कर्मोंके अनुसार किसी व्यापारीको घाटा लगनेवाला है तो उस समय भगवान् वैसी ही परिस्थिति और बुद्धि बना देते हैं, जिससे वह मँहगे दामोंमें चीजें खरीदेगा और भाव गिरनेसे सस्ते दामोंमें बेचेगा; अतः उसको खरीद और बिक्री‒दोनोंमें घाटा-ही-घाटा लगेगा । इस तरह कर्मोंके अनुसार मुनाफा और घाटा होना तो भगवान की न्यायकारिता है और जिससे मुनाफा और घाटा हो सके, वैसी परिस्थिति और बुद्धि बना देना, जिससे शुभ-अशुभ कर्मबन्धन कट जाय‒यह भगवान्‌ की दयालुता है ।

अगर श्रुतिका अर्थ शुभ-अशुभ कर्म करवाकर मनुष्यकी ऊर्ध्व-अधोगति करनेमें ही लिया जाय तो भगवान् न्यायकारी और दयालु हैं‒यह बात सिद्ध नहीं होगी । भगवान् सम्पूर्ण प्राणियोंमें सम है, उनका किसी भी प्राणीके साथ राग-द्वेष नहीं है‒यह बात भी सिद्ध नहीं होगी । ऐसा काम करो और ऐसा काम मत करो ‒शास्त्रों का यह विधि-निषेध भी मनुष्य के लिये लागू नहीं होगा । गुरुकी शिक्षा, सन्त-महापुरुषोंके उपदेश आदि सब व्यर्थ हो जायँगे । जिससे मनुष्य कर्तव्य-अकर्तव्य का विचार करता है, वह विवेक व्यर्थ हो जायगा । मनुष्यजन्म की विशेषता, स्वतन्तता भी खत्म हो जायगी और मनुष्य पशु-पक्षियोंकी तरह ही हो जायगा अर्थात् वह अपनी तरफसे कोई नया काम नहीं कर सकेगा, अपनी उन्नति, उद्धार भी नहीं कर सकेगा !

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

.......गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘गीता-दर्पण’ पुस्तक से


3 टिप्‍पणियां:

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - आठवां अध्याय..(पोस्ट०१)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  चतुर्थ स्कन्ध – आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०१) ध्रुवका वन-गमन मैत्रेय उवाच - सनकाद्या नारदश्च ऋभुर्...