रविवार, 23 जुलाई 2023

नारद गीता पहला अध्याय (पोस्ट 04)

 



शुकदेवजी को नारदजीद्वारा वैराग्य और

ज्ञान का उपदेश देना

 

निरामिषा न शोचन्ति त्यजेदामिषमात्मनः ।

परित्यज्यामिषं सौम्य दुःखतापाद् विमोक्ष्यसे ॥ २१ ॥

 

जिन्होंने भोगोंका परित्याग कर दिया है, वे कभी शोकमें नहीं पड़ते, इसलिये प्रत्येक मनुष्यको भोगासक्तिका त्याग करना चाहिये । सौम्य ! भोगोंका त्याग कर देनेपर तुम दुःख और सन्तापसे छूट जाओगे ॥ २१ ॥

 

तपोनित्येन दान्तेन मुनिना संयतात्मना ।

अजितं जेतुकामेन भाव्यं सङ्गेष्वसङ्गिना॥२२॥

 

जो अजित (परमात्मा ) - को जीतनेकी इच्छा रखता हो, उसे

तपस्वी, जितेन्द्रिय, मननशील, संयतचित्त और विषयोंमें अनासक्त रहना चाहिये ॥ २२॥

 

गुणसङ्गेष्वनासक्त एकचर्यारतः सदा ।

ब्राह्मणो नचिरादेव सुखमायात्यनुत्तमम् ॥ २३ ॥

 

जो ब्राह्मण त्रिगुणात्मक विषयोंमें आसक्त न होकर सदा एकान्तवास करता है, वह शीघ्र ही सर्वोत्तम सुखरूप मोक्षको प्राप्त कर लेता है ॥ २३ ॥

 

द्वन्द्वारामेषु भूतेषु य य एको रमते मुनिः

विद्धि प्रज्ञानतृप्तं तं ज्ञानतृप्तो न शोचति ॥ २४ ॥

 

जो मुनि मैथुन में सुख माननेवाले प्राणियोंके बीच में रहकर भी अकेले रहनेमें ही आनन्द मानता है, उसे विज्ञानसे परितृप्त समझना चाहिये। जो ज्ञानसे तृप्त होता है, वह कभी शोक नहीं करता ॥ २४ ॥

 

शुभैर्लभति देवत्वं व्यामिश्रैर्जन्म मानुषम् ।

अशुभैश्चाप्यधो जन्म कर्मभिर्लभतेऽवशः ॥ २५ ॥

 

जीव सदा कर्मों के अधीन रहता है । वह शुभ कर्मों के अनुष्ठान से देवता होता है, दोनों के सम्मिश्रण से मनुष्य जन्म पाता है और केवल अशुभ कर्मों से पशु-पक्षी आदि नीच योनियों में जन्म लेता है ॥ २५ ॥

 

तत्र मृत्युजरादुःखैः सततं समभिद्रुतः ।

संसारे पच्यते जन्तुस्तत्कथं नावबुद्ध्यसे ॥ २६॥

 

उन-उन योनियोंमें जीवको सदा जरा - मृत्यु और नाना प्रकारके दु:खोंसे सन्तप्त होना पड़ता है। इस प्रकार संसारमें जन्म लेनेवाला प्रत्येक प्राणी सन्तापकी आगमें पकाया जाता है— इस बातकी ओर तुम क्यों नहीं ध्यान देते ? ॥ २६ ॥

 

अहिते हितसंज्ञस्त्वमध्रुवे ध्रुवसंज्ञकः ।

अनर्थे चार्थसंज्ञस्त्वं किमर्थं नावबुद्ध्यसे॥ २७॥

 

तुमने अहितमें ही हित - बुद्धि कर ली है, जो अध्रुव (विनाशशील) वस्तुएँ हैं, उन्हींको 'ध्रुव' (अविनाशी) नाम दे रखा है और अनर्थमें ही तुम्हें अर्थका बोध हो रहा है। यह बात तुम्हारी समझमें क्यों नहीं आती है ? ॥ २७ ॥

 

......शेष आगामी पोस्ट में

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958) से

 



2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌷🍂🌺 जय श्री हरि: 🙏🙏
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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  2. 🌺💐💐🌺जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण हरि: हरि: !!

    जवाब देंहटाएं

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