सोमवार, 24 जुलाई 2023

नारद गीता पहला अध्याय (पोस्ट 06)

 



शुकदेवजी को नारदजीद्वारा वैराग्य और

ज्ञान का उपदेश देना

 

न हि त्वां प्रस्थितं कश्चित् पृष्ठतोऽनुगमिष्यति ।

सुकृतं दुष्कृतं च त्वां यास्यन्तमनुयास्यति ॥ ३५ ॥

 

जब तुम परलोककी राह लोगे, उस समय तुम्हारे पीछे कोई नहीं जायगा। केवल तुम्हारा किया हुआ पुण्य या पाप ही वहाँ जाते समय तुम्हारा अनुसरण करेगा ॥ ३५ ॥

 

विद्या कर्म च शौचं च ज्ञानं च बहुविस्तरम् ।

अर्थार्थमनुसार्यन्ते सिद्धार्थश्च विमुच्यते ॥ ३६ ॥

 

अर्थ (परमात्मा) - की प्राप्तिके लिये ही विद्या, कर्म, पवित्रता और अत्यन्त विस्तृत ज्ञानका सहारा लिया जाता है । जब कार्यकी सिद्धि ( परमात्माकी प्राप्ति) हो जाती है, तब मनुष्य मुक्त हो जाता है ॥ ३६ ॥

 

निबन्धनी रज्जुरेषा या ग्रामे वसतो रतिः ।

छित्त्वैतां सुकृतो यान्ति नैनां छिन्दन्ति दुष्कृतः॥३७॥

 

गाँवोंमें रहनेवाले मनुष्यकी विषयोंके प्रति जो आसक्ति होती है, वह उसे बाँधनेवाली रस्सी के समान है। पुण्यात्मा पुरुष उसे काटकर

आगे - परमार्थके पथपर बढ़ जाते हैं; किंतु जो पापी हैं, वे उसे नहीं

काट पाते ॥ ३७ ॥

 

रूपकूलां मनः स्त्रोतां स्पर्शद्वीपां रसावहाम् ।

गन्धपङ्कां शब्दजलां स्वर्गमार्गदुरावहाम् ॥ ३८ ॥

क्षमारित्रां सत्यमयीं धर्मस्थैर्यवटारकाम्।

त्यागवाताध्वगां शीघ्रां नौतार्यां तां नदीं तरेत् ॥ ३९ ॥

 

यह संसार एक नदीके समान है, जिसका उपादान या उद्गम सत्य है, रूप इसका किनारा, मन स्रोत, स्पर्श द्वीप और रस ही प्रवाह है, गन्ध उस नदीका कीचड़, शब्द जल और स्वर्गरूपी दुर्गम घाट है | शरीररूपी नौकाकी सहायतासे उसे पार किया जा सकता है। क्षमा इसको खेनेवाली लग्गी और धर्म इसको स्थिर करनेवाली रस्सी ( लंगर) है। यदि त्यागरूपी अनुकूल पवनका सहारा मिले तो इस शीघ्रगामिनी नदीको पार किया जा सकता है। इसे पार करनेका अवश्य प्रयत्न करे ॥ ३८-३९ ॥

 

त्यज धर्ममधर्मं च तथा सत्यानृते त्यज ।

उभे सत्यानृते त्यक्त्वा येन त्यजसि तं त्यज ॥ ४० ॥

 

धर्म और अधर्मको छोड़ो। सत्य और असत्यको भी त्याग दो और उन दोनोंका त्याग करके जिसके द्वारा त्याग करते हो, उसको भी त्याग दो ॥ ४० ॥

 

त्यज धर्ममसङ्कल्पादधर्मं चाप्यलिप्सया |

उभे सत्यानृते बुद्धया बुद्धिं परमनिश्चयात् ॥ ४१ ॥

 

संकल्प के त्याग द्वारा धर्म को और लिप्सा के अभावद्वारा अधर्म को भी त्याग दो। फिर बुद्धि के द्वारा सत्य और असत्य का त्याग करके परमतत्त्व के निश्चयद्वारा बुद्धिको भी त्याग दो ॥ ४१ ॥

 

......शेष आगामी पोस्ट में

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958) से

 



4 टिप्‍पणियां:

  1. जय श्री सीताराम

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  2. 🍂🌺🌾जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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  3. 💐🌺💐🥀जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण हरि: हरि:
    हे नाथ मैं आपको भूलूं नहीं 🙏🙏

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