सोमवार, 9 अक्तूबर 2023

मानस में नाम-वन्दना (पोस्ट.. 09)

|| ॐ श्री परमात्मने नम: ||

सहस नाम सम सुनि सिव बानी ।
जपि जेई पिय संग भवानी ॥
…………….(मानस, बालकाण्ड, दोहा १९ । ६)

‘राम’ नाम सहस्रनामके समान है, भगवान् शंकरके इस वचनको सुनकर पार्वतीजी सदा उनके साथ ‘राम’ नाम जपती रहती हैं । पद्मपुराणमें एक कथा आती है । पार्वतीजी सदा ही विष्णुसहस्रनामका पाठ करके ही भोजन किया करतीं । एक दिन भगवान् शंकर बोले‒‘पार्वती ! आओ भोजन करें ।’ तब पार्वतीजी बोलीं‒‘महाराज ! मेरा अभी सहस्रनामका पाठ बाकी है ।’

भगवान् शंकर बोले‒

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने ॥

पद्मपुराणके उस विष्णुसहस्रनाम में यह श्लोक आया है । राम, राम, राम‒ऐसे तीन बार कहनेसे पूर्णता हो जाती है । ऐसा जो ‘राम’ नाम है, हे वरानने ! हे रमे ! रामे मनोरमे, मैं सहस्रनामके तुल्य इस ‘राम’ नाम में ही रमण कर रहा हूँ । तुम भी उस ‘राम’ नामका उच्चारण करके भोजन कर लो । हर समय भगवान् शंकर राम, राम, राम जप करते रहते हैं । पार्वतीजीने भी फिर ‘राम’ नाम ले लिया और भोजन कर लिया ।

राम ! राम !! राम !!!

(शेष आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “मानस में नाम-वन्दना” पुस्तकसे


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