॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
सञ्जय उवाच
तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदन:॥ १॥
श्रीभगवानुवाच
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्ति करमर्जुन ॥ २॥
क्लैब्यं मा स्म गम: पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥ ३॥
संजय बोले—
वैसी कायरतासे व्याप्त हुए उन अर्जुनके प्रति, जो कि विषाद कर रहे हैं और आँसुओं के कारण जिनके नेत्रों की देखनेकी शक्ति अवरुद्ध हो रही है,भगवान् मधुसूदन यह (आगे कहे जानेवाले) वचन बोले।
श्रीभगवान् बोले—
हे अर्जुन! इस विषम अवसरपर तुम्हें यह कायरता कहाँसे प्राप्त हुई, जिसका कि श्रेष्ठ पुरुष सेवन नहीं करते, जो स्वर्गको देनेवाली नहीं है और कीर्ति करनेवाली भी नहीं है। हे पृथानन्दन अर्जुन ! इस नपुंसकता को मत प्राप्त हो; क्योंकि तुम्हारे में यह उचित नहीं है। हे परन्तप ! हृदय की इस तुच्छ दुर्बलता का त्याग करके (युद्धके लिये) खड़े हो जाओ।
ॐ तत्सत् !
शेष आगामी पोस्ट में .........
🌺🥀🌹जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
Jai Sri Radhe Krishna ji🙏🌹🙏
जवाब देंहटाएंJai Sri Hari🙏🌹🙏
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